बरपेटा (असम), 3 नवंबर (Udaipur Kiran) ।असमिया भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में प्राप्त ऐतिहासिक मान्यता के उत्सव स्वरूप, राज्य सरकार के आयोजन में ‘भाषा गौरव सप्ताह’ का राज्य भर में उत्सव मनाया जा रहा है। बरपेटा जिले में केंद्रीय आयोजन में आज असम सरकार के गृह निर्माण, शहरी विकास एवं जलसंचयन विभाग के मंत्री अशोक सिंघल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए।
अपने संबोधन में, मंत्री सिंघल ने तीसरी और चौथी सदी से वर्तमान तक असमिया भाषा के विकास और संरक्षण में योगदान देने वाले महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि असमिया भाषा का विकास प्राचीन काल से आधुनिक युग तक निरंतर होता रहा है। इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उन्होंने आभार व्यक्त किया। राज्य की ओर से, एक लाख पत्रों के माध्यम से प्रधानमंत्री को धन्यवाद भेजने का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया।
सिंघल ने बताया कि असमिया भाषा का विकास तीसरी सदी के पूर्व से ही शुरू हुआ और यह समय के साथ निरंतर आगे बढ़ती रही। उन्होंने ‘श्रीकृष्ण कीर्तन’, हेम सरस्वती का ‘प्रह्लाद चरित्र’, माधव कंदली की ‘रामायण’ तथा शंकरदेव-माधवदेव के ‘कीर्तन-नामघोषा’ जैसी रचनाओं से लेकर ‘अरुणोदय’, ‘जोनाकी’ और ‘रामधेनु’ जैसी साहित्यिक कृतियों के माध्यम से असमिया भाषा ने अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त किया है। उन्होंने उन्नीसवीं सदी के आरंभ में श्रीरामपुर में प्रकाशित ‘धर्मपुस्तक’ का भी उल्लेख किया, जिसमें पहली बार असमिया लिपि का आधुनिक रूप देखा गया।
सिंघल ने विशेष रूप से सोशल मीडिया पर शुद्ध असमिया भाषा के उपयोग का आह्वान करते हुए रोमन लिपि में असमिया लिखने की प्रवृत्ति से बचने की बात की। असमिया को वैश्विक भाषा बनाने के लिए यूनिकोड में लिखना अनिवार्य बताते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में यह “बंगाली और असमिया” लिपि के अंतर्गत शामिल है। उन्होंने भारत सरकार के माध्यम से यूनिकोड कंसोर्टियम में असमिया के लिए अलग कोड चार्ट की मांग का भी आश्वासन दिया।
उन्होंने कहा कि गूगल अनुवाद और माइक्रोसॉफ्ट बिंग में असमिया भाषा का समावेश हो चुका है, किंतु इंटरनेट पर असमिया सामग्री अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में अभी भी कम है। उन्होंने इंटरनेट पर असमिया सामग्री बढ़ाने हेतु असमिया वेबसाइट, ब्लॉग और सोशल मीडिया पर लेखन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। असमिया भाषा के साथ अन्य स्थानीय भाषाओं को भी वैश्विक मंच पर ले जाने हेतु सभी को एकजुट होकर प्रयास करने का आह्वान किया।
बरपेटा की सांस्कृतिक धरोहर का जिक्र करते हुए, मंत्री सिंघल ने महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव, माधवदेव और हरिदेव के योगदान को याद किया। उन्होंने डॉ. बाणीकांत काकोती का भी विशेष उल्लेख किया, जिनकी शोध पुस्तक ‘असमिया: इसका निर्माण और विकास’ ने असमिया भाषा की स्वतंत्रता को स्थापित किया। कठिन समय में असमिया भाषा की स्वतंत्रता स्थापित करने के लिए काकोती के योगदान का उन्होंने विशेष रूप से स्मरण किया।
अंत में, बरपेटा जिला प्रशासन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जिले के चार साहित्यकार – अक्षय कुमार मिश्रा, निरुपमा मिश्रा, डॉ. हरेन चौधरी और हिरण सैकिया लहकर को सम्मानित किया गया। जिला पुस्तकालय सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में जिले के आयुक्त रोहन कुमार झा ने स्वागत भाषण दिया।
(Udaipur Kiran) / देबजानी पतिकर