भीलवाड़ा, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । शाहपुरा जिले के काछोला कस्बे में दशहरे के अवसर पर एक अनूठी परंपरा का पालन किया जाता है। जहां देश के अधिकांश हिस्सों में रावण के पुतले का दहन किया जाता है, वहीं काछोला में पिछले सात सौ वर्षों से मिट्टी से बने रावण के पुतले का वध किया जाता है। इस प्राचीन परंपरा को आज भी काछोला के निवासी पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाते हैं।
काछोला की नई आबादी में दशहरे के दिन मिट्टी से निर्मित रावण की प्रतिमा का तीर से वध किया जाता है। यह परंपरा लगभग सात सौ साल पुरानी है, जो आज भी कायम है। दशहरे के दिन यहां के लोग लक्ष्मीनाथ मंदिर से एक भव्य शोभायात्रा निकालते हैं, जिसमें काछोला और उसके आसपास के 84 गांवों के ग्रामीण शामिल होते हैं।
लक्ष्मीनाथ मंदिर के पुजारी डा. कैलाशचंद्र वैष्णव ने बताया कि भगवान श्रीराम लक्ष्मीनाथ के बैवाण (पालकी) में विराजकर दशहरा मैदान तक पहुंचते हैं। इस शोभायात्रा के दौरान राम और रावण की सेना भी साथ चलती है। यात्रा में शामिल ग्रामीण, राम और रावण के सेनापति अपने व्यंग्यात्मक संवादों से लोगों का मनोरंजन करते हैं।
शोभायात्रा के दौरान भगवान राम और रावण की सेना के बीच एक प्रतीकात्मक युद्ध होता है, जिसमें व्यंग्यात्मक संवादों का आदान-प्रदान होता है। सदर बाजार होते हुए यह शोभायात्रा दशहरा मैदान तक पहुंचती है। वहां राम की सेना और रावण की सेना के बीच एक सांकेतिक युद्ध होता है, जिसमें रावण की सेना पराजित होती है। मिट्टी के रावण का वध काछोला की इस अनूठी परंपरा के अनुसार, रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता, बल्कि मिट्टी से बने रावण की प्रतिमा का तीर से वध किया जाता है। जब राम की सेना विजय प्राप्त कर लेती है, तो लक्ष्मी नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पुरुषोत्तम पाराशर के सानिध्य में भगवान राम तीर-कमान से रावण की नाभि में प्रहार करते हैं। इसके बाद रावण का वध होता है और राम की सेना जयकारों के साथ विजय का जश्न मनाती है।
राम की सेना की वापसी और महाआरती रावण वध के बाद, राम की सेना ढोल-नगाड़ों के साथ मुख्य मार्ग से होते हुए पुनः लक्ष्मीनाथ मंदिर तक पहुंचती है। यहां भगवान राम की महाआरती होती है और श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है। इस धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कस्बे के लोग राम की सेना का स्वागत करते हैं और पूरे कस्बे में उत्सव का माहौल रहता है।
शोभायात्रा का मुख्य आकर्षण राम और रावण की सेना के बीच के व्यंग्यात्मक संवाद होते हैं। इस परंपरा के अनुसार, दोनों सेनाओं के सेनापति संस्कृत के मुहावरों और व्यंग्यात्मक लहजों में एक दूसरे पर कटाक्ष करते हैं। यह संवाद दर्शकों का मनोरंजन करते हैं और साथ ही परंपराओं को जीवित रखते हैं। यह यात्रा गांव के विभिन्न मार्गों से होती हुई जब दशहरा मैदान तक पहुंचती है, तब तक लोग फूलों की वर्षा करके यात्रा का स्वागत करते हैं। 2-3 घंटे तक चलने वाली इस यात्रा के दौरान ग्रामीणों का उत्साह और उमंग देखते ही बनता है।
दशहरे के इस आयोजन के दौरान कस्बे में पुलिस और प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, ताकि इस धार्मिक आयोजन को शांतिपूर्ण और सुरक्षित तरीके से संपन्न किया जा सके। काछोला की यह विशेष परंपरा आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व को कायम रखे हुए है और इसे देखने के लिए हर साल सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं।
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(Udaipur Kiran) / मूलचंद