जयपुर, 20 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । करवा चौथ पर राजस्थान में सबसे पहले भरतपुर-धौलपुर और सबसे आखिरी में भारत-पाक बॉर्डर से सटे जिलों जैसलमेर-बाड़मेर में चांद दिखेगा।
एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की चेयरमैन प्रीति वैष्णव ने बताया कि देश के पूर्वी राज्यों में चांद सबसे पहले दिखाई देगा। इसके लगभग दाे घंटे बाद पश्चिमी हिस्सों में उदय होगा। अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर में यह शाम 6:50 बजे दिखना शुरू होगा, पश्चिम में सोमनाथ में चंद्र दर्शन के लिए 8:43 बजे तक का इंतजार करना होगा। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर की प्रोफेसर कृष्णा शर्मा ने बताया कि करवा चौथ की यह चतुर्थी तृतीया से युक्त ग्राह्य है और चंद्रोदय व्यापिनी होनी चाहिए। इस दिन सुहागिन और नव विवाहिता दिनभर निर्जल -निराहार व्रत करके रात में चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोल सकेंगी। प्रोफेसर कृष्णा शर्मा ने बताया कि एक साल में 24 चतुर्थी आती है, जिसमें चार चतुर्थी मुख्य मानी गई है। उन चार में से भी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी विशेष कही जाती है। इसकी पौराणिक कहानी एक ब्राह्मण की पुत्री से जुड़ी है। ब्राह्मण के सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरावती था। वीरावती बड़ी हुई तो सातों भाइयों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद कार्तिक कृष्ण चतुर्थी पर वीरावती अपने भाइयों से मिलने उनके घर आई थी। उस दिन वीरावती की सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत कर रही थीं, उनके साथ ही वीरावती ने भी ये व्रत कर लिया। वीरावती भूख-प्यास सहन नहीं कर पा रही थी, इस वजह से चंद्र उदय से पहले ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई परेशान हो गए। सभी भाइयों ने तय किया कि किसी तरह बहन को खाना खिलाना चाहिए। उन्होंने सोच-विचार करके एक पेड़ के पीछे से मशाल जलाकर रोशनी कर दी। बहन को होश में लाकर कहा कि चंद्र उदय हो गया है। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधि-विधान से मशाल के उजाले को ही अर्घ्य दे दिया और इसके बाद खाना खा लिया।
अगले दिन वीरावती ससुराल लौट आई। कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद वीरावती ने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी दिन इंद्राणी पृथ्वी पर आई थीं। वीरावती ने इंद्राणी को देखा तो उनसे अपने दुख की वजह पूछी। इंद्राणी ने वीरावती को बताया कि तुमने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत सही तरीके से नहीं किया था, उस रात चंद्र उदय होने से पहले ही तुमने अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इस वजह से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। इंद्राणी ने आगे कहा कि अगर तुम अपने पति को फिर से जीवित करना चाहती हो तो तुम्हें विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत करना होगा। मैं उस व्रत के पुण्य से तुम्हारे पति को जीवित कर दूंगी। वीरावती ने पूरे साल की सभी चतुर्थियों का व्रत किया और जब करवा चौथ आई तो ये व्रत भी पूरे विधि-विधान से किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्राणी ने उसके पति को जीवनदान दे दिया। इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन सुखी हो गया। वीरावती के पति को लंबी आयु, अच्छी सेहत और सौभाग्य मिला।
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(Udaipur Kiran) / रोहित