
प्रयागराज, 25 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि तेल विपणन कम्पनियों (ओएमसी) द्वारा तैयार विपणन अनुशासन दिशानिर्देश (एमडीजी), 2012 के खंड 8.5.6 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए 30 दिन की समय सीमा अनिवार्य है और इसका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने 30 दिन की समय सीमा के बाद फ्यूल डीलर के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने ईंधन डीलर ज्ञानेंद्र कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। याची ने खुदरा आउटलेट के संयुक्त निरीक्षण के दौरान पाई गई कथित विसंगतियों को लेकर 8 सितम्बर, 2023 को उनके खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी थी।
अदालत ने कहा, उक्त खंड के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि निरीक्षण की तिथि से 30 दिनों के भीतर कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना आवश्यक है और यदि नमूने निरीक्षण के दौरान लिए गए हैं, तो यह कारण बताओ नोटिस परीक्षण के परिणाम की तिथि से 30 दिनों के भीतर जारी किया जाना आवश्यक है। लेकिन वर्तमान मामले में, कारण बताओ नोटिस परीक्षण के परिणाम प्राप्त होने की तिथि से 2 महीने से अधिक समय के बाद जारी किया गया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों ने खुदरा डीलरशिप पर अनियमितताओं और कदाचारों को नियंत्रित करने के लिए एमडीजी को लागू किया है। इस प्रक्रिया के तहत, तेल विपणन कंपनियों के अधिकारी समय-समय पर निरीक्षण करते हैं और कोई भी विसंगति पाए जाने पर दिशा-निर्देशों और डीलरशिप समझौतों के तहत कार्रवाई की जाती है।
याची के मामले में, 4 मार्च, 2023 को निरीक्षण किया गया और ईंधन के नमूनों के परीक्षण के परिणाम 23 जून, 2023 को प्राप्त हुए। हालांकि, अधिकारियों ने 8 सितम्बर, 2023 तक कारण बताओ नोटिस जारी करने में देरी की जो एमडीजी 2012 के खंड 8.5.6 के तहत निर्धारित अनिवार्य 30- दिवसीय समय सीमा से बहुत अधिक है।
याची ने इस देरी को अदालत में चुनौती दी और तर्क दिया कि समय सीमा का उल्लंघन नोटिस को कानूनी रूप से अस्थिर बनाता है। अदालत ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि अधिकारी देरी के लिए कोई औचित्य प्रदान करने में विफल रहे हैं और दिशा-निर्देश की भाषा ने 30- दिन की समय-सीमा को अनिवार्य बनाया गया है।
पीठ ने कहा, नमूने निरीक्षण के दौरान लिए गए थे और परीक्षण के परिणाम प्राप्त होने के दो महीने से अधिक समय बाद कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जो अनिवार्य दिशानिर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है।
तदनुसार, न्यायालय ने अत्यधिक देरी के आधार पर नोटिस को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने अधिकारियों को नए सिरे से निरीक्षण करने, नमूने लेने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने की स्वतंत्रता दी है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान कारण बताओ नोटिस इस आधार पर कायम नहीं रह सकता क्योंकि इसे अत्यधिक देरी से जारी किया गया है।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
