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आईजीएमसी कर्मचारियों को बताया अंगदान का महत्व, सोटो ने चलाया जागरूकता अभियान

सोटो का जागरूकता अभियान

शिमला, 1 मार्च (Udaipur Kiran) । इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) में शनिवार को स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) हिमाचल प्रदेश की ओर से अंगदान जागरूकता अभियान चलाया गया। इस दौरान आईसी कंसलटेंट रामेश्वरी और ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर नरेश कुमार ने कर्मचारियों को अंगदान व नेत्रदान का महत्व समझाया और पंपलेट बांटे।

विशेषज्ञों ने बताया कि कोई भी व्यक्ति जीवित रहते या मृत्यु के बाद अंगदान कर सकता है। ब्रेन डेड व्यक्ति अपने आठ अंग दान कर कई लोगों की जान बचा सकता है, जबकि नेत्रदान से किसी की दुनिया रोशन हो सकती है। उन्होंने कहा कि सही जानकारी के अभाव में लोग अंगदान से हिचकिचाते हैं, इसलिए जागरूकता बेहद जरूरी है।

उन्होंने बताया कि 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया के तहत स्वेच्छा से अपने करीबी रिश्तेदारों को अंगदान कर सकता है। सोटो हिमाचल की आधिकारिक वेबसाइट www.sottohimachal.in के माध्यम से कोई भी व्यक्ति घर बैठे अंगदान के लिए शपथ पत्र भर सकता है। क्यूआर कोड स्कैन कर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। यह प्रक्रिया आधार से लिंक होगी। वर्तमान में प्रदेशभर से 1500 से अधिक लोग अंगदान की शपथ ले चुके हैं।

विशेषज्ञों ने बताया कि जीवित रहते व्यक्ति अपने नजदीकी रिश्तेदार को किडनी, लीवर का एक भाग और पैंक्रियाज दान कर सकता है। वहीं, ब्रेन डेड स्थिति में हृदय, फेफड़े, लीवर, किडनी, आंत, पैंक्रियाज और कॉर्निया सहित आठ अंग दान किए जा सकते हैं। उन्होंने कोमा और ब्रेन डेड की स्थिति में अंतर समझाते हुए बताया कि ब्रेन डेड व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह कार्य करना बंद कर देता है, जबकि शरीर वेंटीलेटर के माध्यम से काम करता रहता है।

साल 2023 तक देशभर में 1037 लोगों ने अंगदान किया, जबकि हर साल हजारों लोग दुर्घटनाओं में ब्रेन डेड होते हैं, जो अंगदान के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। देश में हर साल करीब 2 लाख मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन केवल 10 हजार मरीजों को ही यह सुविधा मिल पाती है। इसी तरह 30 हजार लोगों को लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 2 हजार ही संभव हो पाते हैं। आंखों के प्रत्यारोपण के लिए हर साल 10 लाख जरूरतमंद होते हैं, लेकिन केवल 50 हजार को ही नेत्रदान उपलब्ध हो पाता है।

अंगदान को लेकर समाज में जागरूकता की कमी एक बड़ी समस्या है। विशेषज्ञों ने कहा कि कोई भी व्यक्ति जाति, धर्म, लिंग या आयु के भेदभाव के बिना अंगदान कर सकता है। लोगों में जागरूकता बढ़ाने से ही जरूरतमंद मरीजों को नया जीवन देने का लक्ष्य पूरा हो सकता है।

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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा

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