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-नये ज्ञान का सृजन करने वाले,ज्ञान पिपासु कर्मवीर व साधक बनें
महाकुम्भनगर, 09 फरवरी (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि हम पुराने ज्ञान का उपयोग करने वाले ही न बनें बल्कि नये ज्ञान को सृजित करने वाले, ज्ञान पिपासु कर्मवीर व साधक बनें। उन्होंने कहा कि शिक्षा व संस्कृति अलग नहीं हो सकती। देश में शैक्षिक वातावरण निर्माण करने का काम शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने किया है। देश में शिक्षा में परिवर्तन लाने का काम केवल कुछ लोगों या शासन का काम नहीं है इसलिए देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा। देश को आत्मनिर्भर बनाना है तो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। सरकार्यवाह रविवार को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित ज्ञान कुम्भ में विकसित भारत और भारतीय भाषाएं विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मां मातृभूमि व मात्रभाषा का कोई विकल्प नहीं है। भारत की प्रत्येक भाषा में साहित्य व संस्कृति है। अगली पीढ़ी को मातृभाषा का परिचय कराना प्रत्येक मां-बाप का कर्तव्य है। मातृभाषा से जो व्यक्ति दूर हो जाता है, उसके जीवन मूल्यों में संस्कृति की समझ में कमी आ जाती है।
सरकार्यवाह ने कहा कि अतीत में क्या हुआ इसके बारे में चर्चा करके न बैठें आगे के लिए सोचें। भारत में ज्ञान परम्परा इतिहास संसाधन सब है। जरूरत है परिश्रम व संकल्प की सामूहिकता की योजना के तहत चलने की। समवय भाव से संकल्प लेकर परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए आगे बढ़े तो हम भारत को सिरमौर बना सकते हैं। हम प्रतिबद्धता से सामूहिकता से परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए देश के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्न करेंगे तो भारत को न केवल विश्वगुरू बनायेंगे बल्कि परम वैभव का सपना हम पूरा कर पायेंगे।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने समाज का प्रबोधन किया
भारत के भविष्य के निर्माता विद्यालयों की कक्षाओं में जो तैयार होते हैं उनके अंदर ज्ञान और जीवन मूल्य इन दोनों की दृष्टि से वर्तमान भारत में क्या होना आवश्यक है। इसको केवल सरकार से अपेक्षा रखते हुए मांग रखने का काम न्यास ने नहीं किया। न्यास ने समाज में प्रबोधन करने का काम किया। भारत के शिक्षा क्षेत्र के शिक्षाविद, शिक्षक, चिंतक विद्वानों को एकमंच पर लाकर इस विषय में समाधान क्या हो सकता है। इस पर समय-समय पर मंथन किया।
शिक्षा संस्थान चलाने वालों से कहा कि शिक्षा को केवल आप व्यवसाय के नाते न चलाएं, परिवर्तन लाने की भूमिका से चलाएं। शिक्षा के द्वारा संस्कार चाहिए। इसलिए उस संस्कार देने वाली शिक्षा चरित्र निर्माण, पर्यावरण, भारतीय भाषा के आयाम विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम करते हुए आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय में संघर्ष योग्य वातावरण बनाने का प्रयत्न शैक्षिक क्षेत्र के शिक्षक व अभिभावक व शिक्षाशास्त्री शैक्षिक परिवर्तन इन सबके लिए राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में सबको सहयोगी होना चाहिए। ऐसा प्रशंसनीय कार्य न्यास ने किया है।
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(Udaipur Kiran) / बृजनंदन
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