
प्रयागराज, 28 अप्रैल (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लोक सेवक यदि आधिकारिक कर्तव्यों के दायरे से बाहर जाकर कोई गैरकानूनी काम करते हैं तो उन पर मुकदमा दर्ज कराने से पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है। केवल इसलिए कि आरोपित पुलिस अधिकारी हैं, इससे उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी।
कोर्ट ने कहा पुलिस की वर्दी निर्दोष नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं है। कोर्ट ने पुलिसकर्मियों की उन पर दर्ज मुकदमे की सम्पूर्ण कार्रवाई को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने अनिमेष कुमार और तीन अन्य की याचिका पर दिया।
फर्रूखाबाद के कोतवाली थाने में याचियों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया था। शिकायतकर्ता एक डॉक्टर ने आरोप लगाया था कि वह 28 जून 2022 को अपने स्टाफ सदस्यों कुलदीप अग्निहोत्री, अशोक कुमार, विजय अग्रवाल व सौम्या दुबे के साथ कार से कानपुर से लौट रहे थे। इसी दौरान दो तीन लोग कार से निकले और उनसे कुछ कहासुनी हो गई। इसके बाद रात दस बजे तीन गाड़ियों से आए लोगों ने उन्हें खुदागंज के पास रोक लिया। कार में सवार कांस्टेबल दुष्यंत, उपनिरीक्षक अनिमेष कुमार, कांस्टेबल कुलदीप यादव व कांस्टेबल सुधीर व अन्य ने उनसे मारपीट की। रुपये व सोने की चेन छीन लिए। कन्नौज ले जाकर उन्हें करीब डेढ़ घंटे तक बंधक बनाया।
इस मामले में आरोपित पुलिस कर्मियों पर मुकदमा दर्ज़ किया गया। जिस पर चार्ज शीट दाखिल होने के बाद आरोपितों ने जनवरी 2024 में पारित समन आदेश सहित पूरी कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
याचियों के वकील का कहना था कि उन पर झूठा मुकदमा दर्ज कराया गया है। सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मंजूरी प्राप्त किए बिना उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि कथित घटना के समय याची पुलिस अधिकारी होने के नाते गश्त ड्यूटी पर थे।
शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि लोक सेवक जब अपनी आधिकारिक क्षमता में कार्य कर रहे हैं तभी उन पर मुकदमा दर्ज करने से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता है। न्यायालय ने मामले में तथ्यों और आरोपों की जांच की, तो उसने पाया कि सबसे पहले घटना के समय याची कथित घटना स्थल पर गश्त ड्यूटी पर नहीं थे। और दूसरी बात, हमले और डकैती के कथित कृत्य का याचियों के आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन के साथ कोई उचित या तर्कसंगत सम्बंध नहीं था। गवाहों के बयान व मेडिकल रिपोर्ट घटना का समर्थन करती हैं। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
