
—शुक्रवार को रंगों की होली खेली जाएगी,चौसट्टी देवी का दर्शन और परिक्रमा भी
वाराणसी,13 मार्च (Udaipur Kiran) । धर्म नगरी काशी में होली का उल्लास और परंपराओं का अद्भुत संगम शहर की गली-गली में दिख रहा है। बाबा विश्वनाथ के गौना उत्सव से इस पर्व की शुरुआत होती है, जहां भक्त बाबा से रंग खेलने की प्रतीक रूप से अनुमति प्राप्त कर उत्सव का आनंद लेते हैं। गौना उत्सव के बाद से ही नगरी होली के उल्लास में डूब गई है। शहरी और ग्रामीण अंचल में युवाओं के सिर रंगों के पर्व की खुमारी छाने लगी है। युवा और बच्चे एक दूसरे पर अबीर गुलाल जमकर उड़ा रहे हैं। गंगाघाटों के साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों में भी उत्सव का आयोजन हो रहा है। शहरी युवा और महिलाएं इसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। इस बार का होलिका दहन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि ज्योतिषविदों के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा गुरुवार, 13 मार्च को पूर्वाह्न 10:02 बजे शुरू हो गई है। जो 14 मार्च को 11:11 बजे तक रहेगी, लेकिन भद्राकाल के कारण रात 10:37 बजे के बाद ही होलिका दहन होगा। इस परंपरा के अनुसार, रात्रिव्यापिनी पूर्णिमा में ही होलिका दहन का विधान है। ऐसे में काशी में परंपरानुसार अगले दिन 14 मार्च को ही होली मनेगी। वहीं ,देश के अन्य हिस्सोें में 15 मार्च को होली खेली जाएगी।
काशी में होली का पर्व और भी खास हो जाता है, क्योंकि इस दिन 64 योगिनियों (चौसट्टी देवी) के दर्शन और पूजन का भी महत्व है। श्रद्धालु चौसट्टीघाट पर जाकर देवी के दरबार में अबीर गुलाल अर्पित करते हैं और मंदिर की परिक्रमा करते हैं। मान्यता के अनुसार, 64 योगिनियां काशी में बसी हुई हैं । श्रद्धालु चौसट्टीघाट स्थित देवी के दरबार में अबीर गुलाल अर्पित कर मंदिर की परिक्रमा करते हैं। चौसट्टी देवी, 64 योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि राजा दिवोदास का मतिभ्रम करने के लिए स्वयं महादेव ने 64 योगिनियों को काशी भेजा था। काशी की समरसता, धार्मिकता के मोहपाश में योगिनी बंध गयीं और काशी में ही बस गयीं। अन्तत: महादेव को ब्रह्मा जी के माध्यम से काशी मेें पुन: प्रवेश का अवसर मिला।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
