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‘डबल जलेबी’ से ओलंपिक तक: हॉकी खिलाड़ी अंगद बीर सिंह की प्रेरक यात्रा

हॉकी खिलाड़ी अंगद बीर सिंह

नई दिल्ली, 26 मई (Udaipur Kiran) । हर खिलाड़ी के करियर में एक ऐसा पल होता है, जब वह खुद को साबित करता है, कुछ अलग करके, कुछ ऐसा जो दर्शकों और कोच दोनों को चौंका देता है। हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) में कलिंगा लांसर की ओर से खेलने वाले 22 वर्षीय अंगद बीर सिंह के लिए वह डिफाइनिंग मोमेंट था. उनका सिग्नेचर मूव ‘डबल जलेबी’, जिसने उन्हें रातों-रात सुर्खियों में ला दिया।

‘डबल जलेबी’: एक वायरल मूव, मेहनत की मिसाल

तमिलनाडु ड्रैगन्स के खिलाफ एक हाई-प्रेशर शूटआउट में अंगद ने गोलकीपर डेविड हार्ट को चकमा देते हुए जो गोल दागा, वह सिर्फ एक शॉट नहीं था, वह उनके जुनून, अभ्यास और आत्मविश्वास का प्रतीक था। सोशल मीडिया पर इस मूव ने धूम मचा दी, लाखों लाइक्स और हजारों शेयर के साथ अंगद एक इंटरनेट सनसनी बन गए।

अंगद कहते हैं, मैंने इसे सालों तक अभ्यास में तराशा है। एचआईएल कैंप में खासतौर पर इस पर ध्यान दिया क्योंकि मुझे पता था कि शूटआउट में ऐसे शॉट्स निर्णायक हो सकते हैं। जब लोगों को ये पसंद आया, तो लगा मेहनत बेकार नहीं गई। अब मैं इसे और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा हूं।”

रणनीति, अभ्यास और आत्मविश्वास का मेल

‘डबल जलेबी’ सिर्फ एक ट्रिक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हथियार है, जहां तकनीक, टाइमिंग और साहस का संगम होता है। यही कारण है कि यह मूव सिर्फ दर्शकों का ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कोचों का ध्यान भी खींच लाया। इसके चलते अंगद को एफआईएच प्रो लीग में भारतीय सीनियर टीम के लिए खेलने का मौका मिला।

कलिंगा लांसर के कोच वेलेंटिन आल्टनबर्ग ने अंगद की प्रशंसा करते हुए कहा, अंगद की तेजी, आत्मविश्वास और मैच के दबाव में सही निर्णय लेने की क्षमता अद्वितीय है। ‘डबल जलेबी’ सिर्फ एक स्टाइलिश मूव नहीं, बल्कि उनके खेल में गहराई और समझ का प्रमाण है।”

सपनों से ओलंपिक तक का सफर

अपने हॉकी सफर पर बात करते हुए अंगद ने साझा किया कि बचपन से मेरा सपना था कि मैं भारत की जर्सी पहनूं। मैंने जूनियर लेवल पर खेला, राज्य का प्रतिनिधित्व किया, एचआईएल में अनुभव लिया और फिर भारत के लिए डेब्यू किया। अब मेरा अगला लक्ष्य है ओलंपिक गोल्ड।”

वह मानते हैं कि जूनियर से सीनियर स्तर पर संक्रमण चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने हरमनप्रीत सिंह और हार्दिक सिंह जैसे खिलाड़ियों से बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने बताया कि “सीनियर हॉकी में रणनीति की अहमियत बढ़ जाती है। हर मैच एक शतरंज की तरह होता है, जहां हर मूव सोच-समझकर खेलना होता है। लेकिन यहीं असली मजा भी है।”

अगंद ने कहा कि अब जब वो भारतीय सीनियर टीम में हैं, तो उनकी निगाहें वर्ल्ड कप 2026 और फिर ओलंपिक 2028 पर टिकी है। उनका कहना है कि हर दिन मैं उसी सपने को जीता हूं। हर अभ्यास, हर मैच, हर मूव उसी एक लक्ष्य की ओर है, भारत के लिए ओलंपिक गोल्ड जीतना।

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(Udaipur Kiran) / आकाश कुमार राय

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