गोरखपुर, 19 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । एचआईवी संक्रमित मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है। ऐसे में उसके टीबी ग्रसित होने की भी आशंका कहीं अधिक हो जाती है। एचआईवी संक्रमण से बचाव में जनजागरूकता की अहम भूमिका है। यह बातें जिला एड्स नियंत्रण एवं जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव ने कहीं। वह राजकीय महिला पॉलीटेक्निक कॉलेज में सघन अभियान 4 की बात संबंधित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इसकी शुरूआत अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर 12 अगस्त को हुई थी। इसके तहत एचआईवी एड्स थीम पर कॉलेज परिसर में रंगोली और व्याख्यान प्रतियोगिता के भी आयोजन किये गये।
जिला एड्स नियंत्रण एवं जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी ने कि कहा कि प्रत्येक एचआईवी मरीज की टीबी जांच जरूर कराई जाती है । इसी प्रकार जब कोई नया टीबी मरीज मिलता है तो उसकी एचआईवी जांच भी करवाते हैं। दोनों बीमारियों से ग्रसित मरीज भी सम्पूर्ण इलाज करवाते हैं तो बेहतर जीवन जी सकते हैं, लेकिन लापरवाही जानलेवा साबित होती है। बीते पांच वर्षों में स्वास्थ्य विभाग ने एचआईवी ग्रसित 480 से अधिक टीबी मरीजों की पहचान कर उन्हें इलाज की सुविधा से जोड़ा है ।
डॉ यादव ने कहा कि एचआईवी का संक्रमण पहले से संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित यौन संबंध बनाने, संक्रमित रक्त या रक्त उत्पाद चढ़ाए जाने, संक्रमित सुई के साझा प्रयोग से और संक्रमित गर्भवती माता से उसके होने वाले शिशु को हो सकता है। यौन संबंध के दौरान कंडोम के इस्तेमाल, लाइसेंस युक्त ब्लड बैंक से ही रक्त लेकर चढ़ाने, सदैव नई नीडल या सिरिंज का इस्तेमाल करने और डॉक्टर की देखरेख में सुरक्षित संस्थागत प्रसव कराने से स्वस्थ व्यक्ति और मां से शिशु में एचआईवी का संक्रमण नहीं होता है। एड्स से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए हेल्पलाइन नंबर 1097 पर भी सम्पर्क किया जा सकता है ।
उन्होंने कहा कि दो सप्ताह से अधिक की खांसी, पसीने के साथ बुखार, अत्यधिक कमजोरी, भूख न लगना, बलगम में खून आना और सीने में दर्द टीबी के लक्षण हैं। ठीक इसी प्रकार वजन का कम होना, एक महीने से अधिक बुखार आना और एक महीने से अधिक का दस्त, एचआईवी संक्रमण का लक्षण है। एचआईवी संक्रमण की आखिरी अवस्था को एक्वायर्ड इम्युनो डिफिशियंसी सिंड्रोम (एड्स) कहते हैं। यह ऐसी अवस्था है जिसमें एचआईवी के साथ साथ कई बीमारियों के लक्षण दिखने लगते हैं। इस अवस्था में मनुष्य बीमारियों से लड़ने की ताकत पूरी तरह से खो देता है। एड्स एक लाइलाज बीमारी है। पूर्ण और सही जानकारी ही इसका एक मात्र उपचार है। एचआईवी की समय से पहचान कर एंट्री रेट्रो वायरल ट्रीटमेंट (एआरटी) औषधियों का सेवन किया जाए तो मरीज अच्छा, लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकता है। यह औषधियां मेडिकल कॉलेज स्थित एआरटी सेंटर से सरकारी प्रावधानों के अनुसार उपलब्ध हैं। लगातार खांसी, चर्म रोग, मुंह एवं गले में छाले होना, लसिका ग्रंथियों में सूजन एवं गिल्टी, याददाश्त खोना, मानसिक क्षमता कम होना और शारीरिक शक्ति का कम होना एड्स के लक्षण हैं।
इस मौके पर कॉलेज के प्रधानाचार्य इंजीनियर विरेंद्र कुमार, कॉलेज की नोडल अधिकारी ज्योति सिंह, आरती यादव, राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के जिला कार्यक्रम समन्वयक धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र, मिर्जा आफताब बेग और टीबी एचआईवी कोआर्डिनेटर राजेश सिंह ने भी छात्राओं को जागरूक किया ।
—————
(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय