
कोलकाता, 27 मई (Udaipur Kiran) । भारतीय सेना ने एक बार फिर राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए मणिपुर के नोनी जिले में इतिहास रच दिया है। पूर्वी कमान के अंतर्गत कार्यरत 107 इन्फैंट्री बटालियन (टेरिटोरियल आर्मी) 11 गोरखा राइफल्स— जिन्हें ‘गोरखा टेरियर्स’ के नाम से जाना जाता है— ने देश की एक महत्वपूर्ण ढांचागत परियोजना को सुरक्षित और सफल रूप से पूरा करवाने में निर्णायक योगदान दिया है।
कोलकाता के विजय दुर्ग स्थित सेना के पूर्वी कमान मुख्यालय की ओर से मंगलवार सुबह जारी एक बयान में बताया गया है कि नोनी में ब्रिज नंबर 164 पर बनाए गए विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पियर पुल के निर्माण के दौरान गोरखा टेरियर्स ने लगातार सुरक्षा और संचालन सहायता प्रदान की। यह इलाका न केवल दुर्गम भूभाग और प्रतिकूल मौसम से जूझता है, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी संवेदनशील माना जाता है। ऐसे में सेना की अनुशासित मौजूदगी ने निर्माण कार्य में किसी प्रकार की बाधा नहीं आने दी।
इस ऐतिहासिक पुल का अंतिम स्पैन 25 अप्रैल 2025 को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया, जो न केवल इंजीनियरिंग की उपलब्धि है, बल्कि सैन्य-सिविल सहयोग और राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक भी है। यह पुल भारतीय रेलवे की महत्वाकांक्षी जिरीबाम–तुपुल–इंफाल रेललाइन का अहम हिस्सा है, जिसे बीबीजे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (भारत सरकार का उपक्रम) द्वारा निर्मित किया गया है। यह रेललाइन उत्तर-पूर्व भारत के लिए रणनीतिक और विकास की दृष्टि से जीवनरेखा मानी जाती है। आज जब यह पुल भारत की अधोसंरचनात्मक क्षमता का प्रतीक बनकर खड़ा है, तब इसके पीछे गोरखा टेरियर्स की अटूट निगरानी और समर्पण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सेना की यह भूमिका पारंपरिक सैन्य दायित्वों से कहीं आगे जाकर उन इलाकों में विकास को सहयोग देने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जहां सामान्य हालात में काम करना भी चुनौती होता है।नोनी में पुल का सफल निर्माण न केवल तकनीकी कौशल की जीत है, बल्कि यह गोरखा टेरियर्स के साहस और समर्पण को एक सम्मानपूर्ण सलामी भी है।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
