हकृवि में वॉटर एफिसिएंट क्रॉप कल्टीवार विषय पर बैठक आयोजित
हिसार, 19 दिसंबर (Udaipur Kiran) । हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर
कम्बोज ने खरीफ के मौसम में कम पानी में उगाई जाने वाली व बेहतर उत्पादन देने वाली
किस्मों को उगाने के लिए उन्नत सस्य क्रियाएं अपनाकर जल संरक्षण करने पर जोर दिया है।
उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी के उज्जवल भविष्य के लिए जल संसाधनों का संरक्षण बहुत जरूरी
है।
प्रो. बीआर कम्बोज विश्वविद्यालय में वॉटर एफिशिएंट क्रॉप कल्टीवार विषय पर
चौथी उच्चस्तरीय समिति की बैठक को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। पंजाब
विश्वविद्यालय लुधियाना के पूर्व कुलपति एवं समिति के चेयरमैन पद्मश्री डॉ. बीएस ढिल्लों
इसमें विशिष्ट अतिथि रहे। बैठक में पीडब्ल्यूआरडीए के तकनीकी सलाहकार व पंजाब के पूर्व
कृषि निदेशक राजेश वशिष्ठ, कृषि महाविद्यालय पीएयू के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. एसएस कुकल
एवं भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान केपूर्व
निदेशक डॉ. सीएल आचार्य भी उपस्थित रहे।
कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने जल जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधन के कृषि में
सदुपयोग करने व उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप कृषि योजना बनाकर प्राकृतिक संसाधनों को
बचाने के महत्व के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि बायोसैंसर जैसी आधुनिक
तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है। मक्का की फसल धान वाले क्षेत्रों
में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकती है। मक्का का साईलेज 70-80 दिन में
तैयार हो जाता व चारे की कमी के दिनों में पशुओं के लिए उपयोगी होता है। इसी तरह गेहूं
वाले क्षेत्रों में राया की फसल उगाकर पानी की बचत की जा सकती है। राया के बाद छोटी
अवधि की फसल जैसे मूंग उगाई जा सकती है जिससे मुनाफा बढने के साथ संसाधनों की बचत भी
होगी।
पद्मश्री डॉ. बीएस ढिल्लो ने खरीफ के मौसम में धान की कम पानी में उगाई जाने
वाली व धान की सीधी बिजाई के लिए उपयुक्त किस्मों के बारे में चर्चा की। उन्होंने खरीफ
में उगाए जाने वाली अन्य फसलें जैसे मूंग, अरहर, बाजरा व कपास की भी कम पानी में बेहतर
पैदावार देने वाली किस्मों बारे चर्चा की।
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बैठक में सभी का स्वागत करते हुए धान-गेहूं
फसल चक्र में पानी की बचत के लिए विभिन्न तकनीकों व पहलुओं पर अपने विचार रखे। उन्होंने
कपास, धान, मक्का फसल की अधिक पैदावार व मुनाफा देने के साथ-साथ कम पानी में उगाई जाने
वाली किस्मों संबंधी शोध को बढ़ावा देने संबंधी रणनीति के बारे में भी बताया।
डॉ. सीएल आचार्य ने बताया कि भूमिगत जल संसाधनों का अधिक दोहन हो रहा है जिसके
कारण पूरे देश में 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं। साथ ही भूमिगत जल में पाये
जाने वाले हानिकारक तत्व भी होते है। गत वर्ष हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में क्रमश:
8.69, 16.98 व 11.25 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत जल निकाला जा सकता था जबकि 11.8,
27.8 व 16.74 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत जल निकाला गया। उन्होंने बताया कि आगे ऐसा
समय भी आएगा जब फलड सिंचाई बंद करनी होगी व अधिक दक्षता वाले सिंचाई के तरीके जैसे
टपका व फव्वारा सिंचाई जैसी तकनीकों को अपनाना होगा।
डॉ. एसएस कुकल ने बताया कि कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली नई किस्मों
का परीक्षण अधिक से अधिक स्थानों पर करना जरूरी है ताकि उनके नतीजे सत्यापित हो सके।
राजेश वशिष्ठ ने सभी का धन्यवाद किया। बैठक का संचालन डॉ. एसएस यादव ने किया। इस अवसर
पर विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, विभागाध्यक्ष व वैज्ञानिक
उपस्थित रहे।
(Udaipur Kiran) / राजेश्वर