

फाउंडेशन की मदद से आमजन को बिना लाभ-हानि के घोंसलों को वितरित कर रहे
मात्र 150 रुपये में तैयार होता कृत्रिम घोंसला, अब तक 2000 घोंसले बनवा चुके
हिसार, 25 अप्रैल (Udaipur Kiran) । पेशे से कम्प्यूटर की वेबसाइट और ग्राफिक्स का काम
करने वाले युवा रामदास ने बेजुबान चिड़ियों के पुनर्वास के लिए आशियाना नाम मुहिम
शुरू की है। उन्होंने मात्र 150 रुपये में आकर्षक पक्षियों का कृत्रिम घोंसला तैयार
किया और अब एक संस्था की मदद से आमजन को नो प्रोफिट बेस पर कृत्रिम घोंसला उपलब्ध करवा
रहे हैं।
अब तक 2000 कृत्रिम घोंसले वे संस्थाओं की मदद से आमजन को दे चुके हैं। फतेहाबाद के लगते गांव धांगड़ के युवा रामदास ने बताया कि हिसार में जॉब होने
की वजह से रोजाना बस से जब कार्यक्षेत्र आते थे तो कहीं पर भी उन्हें चिड़ियों की चहचाहट
सुनाई नहीं देती थी जिसकी टीस उनके मन में थी। गावों में लोगों ने पक्के मकान बना लिए
तो शहर में कंकरीट की बडी बिल्डिंगों का निर्माण हो गया। लोगों ने घरों में एसी लगाने
के मकसद से खिडकियां बनाई भी तो उसे शीशों से कवर कर दिया।
इसलिए घर, आंगन, गलियों
और चौपालों में चिड़ियों की चहचाहट गायब सी हो गई है। प्रकृति के इस उपहार और जीवों
से प्यार करने वाले रामदास ने पक्षियों के लिए कृत्रिम घोंसले बनाने का विचार किया।
इसलिए उसने अपने परिवार और मित्रों के सहयोग से इन बेजुबान चिड़ियों के पुनर्वास के
लिए एक मुहिम शुरू की। उन्होंने संकल्प लिया है कि वह आमजन को इस बात के लिए जागरूक
करेंगे कि वे अपने घर की छत पर कृत्रिम घोंसला लगाएं इसके साथ प्रत्येक सार्वजनिक स्थानों
पर भी ज्यादा से ज्यादा घोंसले लगाए जाएं। इन घोंसलों को आशियानों का नाम दिया गया।
रामदास की इस मुहिम में सेव बर्ड्स फाउंडेशन के सदस्यों ने सहयोग किया। उन्होंने
फर्नीचर का काम करने वाले कुछ मिस्त्रियों की काम पर लगाया।
फाउंडेशन के सदस्य मिलकर
रामदास के साथ आशियाने पहले तैयार करते हैं और फिर उन्हें घरों और सार्वजनिक स्थानों
पर लगाते है और घरों में पहुंचाते है। संस्था के सदस्य प्रदीप, नरेश, नवीन, कुलदीप,
हैप्पी का कहना कि चिड़िया को लुप्त होने से अब भी बचाया जा सकता है। बषर्ते उनके लिए
दाना, पानी और घर का इंतजाम हो। इंसानों ने विकास के नाम पर पहले पेडों को काटा और
पक्की इमारतें बना ली। अब इन बेजुबानों की सेवा करने के लिए इंसान को ही भगवान ने समर्थ
बनाया है तो वे कृत्रिम घोंसलों को घर में रखकर उनके अस्तित्व को बचा सकते हैं। रामदास
का कहना कि यदि कोई संस्था 50 से ज्यादा आशियाने मंगवाती है तो उन्हें घर तक कृत्रिम
घोंसले पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी।
(Udaipur Kiran) / राजेश्वर
