
शिमला, 06 मई (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच ने अब तेज रफ्तार पकड़ ली है। ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत दो पूरक अभियोजन शिकायतें विशेष अदालत (पीएमएलए) शिमला में दाखिल की हैं। इन पर अदालत ने संज्ञान भी ले लिया है। ये शिकायतें 28 मार्च 2025 को दाखिल की गई थीं। यह जानकारी ईडी ने मंगलवार को प्रेस विज्ञप्ति में दी।
इन पूरक शिकायतों में कुल 10 आरोपियों को नामजद किया गया है। इनमें दो शैक्षणिक संस्थाएं भी शामिल हैं। पहली शिकायत काला अंब स्थित हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस (एचजीपीआई) का संचालन कर रहे मां सरस्वती एजुकेशनल ट्रस्ट और उसके पांच पदाधिकारियों के खिलाफ दाखिल की गई है। दूसरी शिकायत न्यू चंडीगढ़ में संचालित आईटीएफटी कॉलेज से जुड़ी आईटीएफटी कंसल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड और उसके पांच पदाधिकारियों के खिलाफ दायर की गई है।
छात्रवृत्ति घोटाले की जांच मूल रूप से सीबीआई की उस प्राथमिकी पर आधारित है। इसमें वर्ष 2013 से 2019 के बीच हिमाचल प्रदेश के निजी संस्थानों पर अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति की बड़ी राशि हड़पने के आरोप लगे थे। इन संस्थानों ने छात्रों के फर्जी नाम, जाति प्रमाणपत्र और फर्जी दाखिले के जरिये सरकारी फंड का दुरुपयोग किया।
ईडी की जांच में यह सामने आया है कि संबंधित संस्थानों ने कई ऐसे छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति प्राप्त की, जो या तो कभी इन संस्थानों में पढ़े ही नहीं या बीच में पढ़ाई छोड़ चुके थे। साथ ही छात्रों को डे-स्कॉलर की बजाय होस्टलर दिखाकर और फर्जी फीस स्ट्रक्चर तैयार कर ज्यादा राशि वसूल की गई।
ईडी ने इस मामले में अब तक छह आरोपियों को गिरफ्तार किया है। इनमें एचजीपीआई के वाइस चेयरमैन विकास बंसल और आईटीएफटी कॉलेज के पूर्व कार्यकारी निदेशक गुलशन शर्मा प्रमुख हैं। इन्हें 30 जनवरी 2025 को गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले अगस्त 2023 में चार अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था। सभी आरोपी फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।
प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक इस मामले में कुल 30.50 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियों को जब्त किया है। इनमें शैक्षणिक संस्थानों की जमीनें, भवन, बैंक खातों में जमा राशि और अन्य परिसंपत्तियां शामिल हैं।
ईडी प्रवक्ता के अनुसार मामले की जांच अभी भी जारी है।
गौरतलब है कि यह छात्रवृत्ति घोटाला वर्ष 2013 से 2019 के बीच हुआ जब प्रदेश के शिक्षा विभाग द्वारा अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में भारी अनियमितताएं सामने आईं। कई निजी संस्थानों ने फर्जी छात्रों के नाम पर बैंक खाते खोलकर सरकारी राशि का गबन किया। निजी और सरकारी शिक्षण संस्थानों में हजारों छात्रों के नामों के तहत बैंक खाते खोले गए, जिसके तहत छात्रवृत्ति का पैसा दिया गया है। सीबीआई की जांच के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इसे लेकर मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामले की जांच कर रही है।
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
