प्रयागराज, 26 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि शेयर बाजार के अपने जोखिम हैं और निवेश की वसूली के लिए शेयर ब्रोकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना उचित नहीं है। न्यायालय ने एक लाइसेंसधारी शेयर दलाल एवं प्रतिभूति कम्पनी के निदेशक मालिक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
याची जितेन्द्र कुमार केसरवानी के खिलाफ इक्विटी शेयर लेन-देन विवाद के सम्बंध में आईपीसी की धारा 420 और 409 के तहत प्राथमिकी थाना हरिपर्वत, आगरा में दर्ज की गई थी।
न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने कहा कि आवेदक यहां एक शेयर ब्रोकर था और विरोधी पक्ष शेयरों में निवेश के परिणामों से पूरी तरह परिचित था। इस तरह के निवेश के जोखिम से अवगत होने के कारण उसने आवेदक के माध्यम से निवेश किया था। पक्षों के बीच कुछ लेखा विवाद है, जिसके लिए तत्काल एफआईआर दर्ज की गई। उसमें राशि की वसूली की मांग की गई है, जो आपराधिक कार्रवाई द्वारा स्वीकार्य नहीं है।
आवेदक ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप पत्र और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। जिसमें तर्क दिया गया कि एफआईआर में धारा 420 और 409 आईपीसी के कोई तत्व नहीं है। आवेदक ने प्रस्तुत किया कि पक्षों के बीच विवाद एक व्यापारिक लेन-देन से सम्बंधित था। इसलिए यह मामला भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अधिनियम, 1992 के दायरे में आता है।
हाईकोर्ट ने ललित चतुर्वेदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वित्तीय लेन-देन पर विवाद आपराधिक कार्यवाही का आधार नहीं हो सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा “एक ही आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति को धारा 409 आईपीसी के साथ-साथ धारा 420 आईपीसी के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि दोनों अपराध विरोधाभासी हैं। हाईकोर्ट ने कहा, “सेबी अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो आईपीसी या सीआरपीसी जैसे सामान्य अधिनियम पर प्रभावी होगा।’
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे