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पुलिस चार्जशीट दाखिल होने अथवा रिपोर्ट पर कोर्ट के संज्ञान लेने तक पीड़िता के बयान की कापी किसी को न दी जाए : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट

-हाईकोर्ट ने डीजीपी से इस आदेश की सूचना सभी थानों में भेजने का दिया आदेश

प्रयागराज, 30 अगस्त (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वे चार्जशीट-पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिए जाने तक धारा 164 सीआरपीसी (अब धारा 183 बीएनएसएस) के तहत दर्ज पीड़ितों के बयान की प्रमाणित कॉपी किसी भी व्यक्ति को जारी न करें।

जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह निर्देश देते हुए कहा कि कई मामलों में अभियुक्तों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट को चुनौती देते हुए पीड़ितों के बयान कोर्ट में दाखिल किए। यहां तक कि निचली अदालतें भी धारा 164 के तहत दर्ज बयानों की प्रमाणित प्रतियां जारी कर रही हैं जो कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है।

इस सम्बंध में आदेश पारित कर हाईकोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि आरोपी या किसी अन्य व्यक्ति को धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयानों की प्रति प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। जब तक कि सम्बंधित अदालत, मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 173 सीआरपीसी के तहत दायर आरोपपत्र-पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान नहीं लिया जाता है।

हाईकोर्ट ने ए बनाम यूपी राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हवाले से कहा कि धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज करने के तुरंत बाद इसकी कॉपी जांच अधिकारी को दी जानी चाहिए। परन्तु इस विशिष्ट निर्देश के साथ कि इस तरह के बयान की सामग्री किसी भी व्यक्ति को तब तक नहीं बताई जानी चाहिए, जब तक कि धारा 173 सीआरपीसी के तहत आरोप पत्र-पुलिस रिपोर्ट दायर न हो जाए। इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह अपने आदेश को चीफ जस्टिस के संज्ञान में लाएं, जिससे यदि उनके द्वारा उचित पाया जाए तो इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश राज्य के जिला न्यायालयों को सर्कुलर जारी किया जा सके।

हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि विवेचना अधिकारी जांच के दौरान धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए बयानों की प्रतियां किसी को भी उपलब्ध नहीं कराएंगे। न्यायालय ने यह निर्देश याची उजाला एवं अन्य द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए जारी किया। जिसमें उनके खिलाफ दर्ज अपहरण का मामला रद्द करने की मांग की गई थी। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि आपराधिक मामले के सम्बंध में उसे गिरफ्तार न किया जाए।

कोर्ट ने यह देखते हुए कि पीड़िता याची नंबर 1 के धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए बयान में पीड़िता ने अभियोजन पक्ष के बयान का समर्थन नहीं किया। उसने कहा कि वह याची नंबर 2 (आरोपी) के साथ स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर गई। उन्होंने एक-दूसरे से विवाह भी किया। उनके बीच सहमति से शारीरिक सम्बंध भी थे। यह देखते हुए न्यायालय ने आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

याचिका के अनुसार 27 जून 2024 को थाना बरदह, जिला आजमगढ़ में भारतीय दंड संहिता की धारा 363 व 366 के अन्तर्गत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। इस प्राथमिकी को रद्द कराने के लिए याचिकाकर्ताओं ने पीड़िता द्वारा धारा 164 सीआरपीसी में दिए बयान का सहारा लिया था।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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