
नैनीताल, 17 फरवरी (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में चकराता (देहरादून) और पौड़ी में लगी जंगल की आग का संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) को 19 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने उनसे यह पूछा है कि 2021 में हाईकोर्ट ने जंगल की आग काे रोकने के लिए जो दिशा निर्देश दिए थे उस आदेश का कितना अनुपालन हुआ। राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को अवगत कराया गया कि इससे संबंधित विशेष अपील सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं। इसलिए राज्य सरकार को वर्तमान स्थिति पेश करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाए। इसका विरोध करते हुए न्यायमित्र ने कोर्ट के समक्ष कहा कि यह मामला अलग है। जो मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है वह अलग है। इस मामले का कोर्ट ने कोविड काल के दौरान स्वतः संज्ञान लिया था। जब संज्ञान लिया था तब भी प्रदेश के जंगलों में मानवों की कम आवाजाही होने पर भी जंगल आग से धधक रहे थे। इस पर हाईकोर्ट ने जो दिशा निर्देश राज्य सरकार को दिए थे उनका अभी तक अनुपालन नहीं किया। जबकि अभी फारेस्ट के फ्रंटलाइन कहे जाने वाले कर्मचारी फारेस्ट गार्ड अपनी सुरक्षा व अन्य सुविधाओं को पाने के लिए हड़ताल पर हैं।
पूर्व में कोर्ट ने राज्य सरकार को अहम दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि वन विभाग में खाली पड़े 65 प्रतिशत पदों को 6 माह में भरे व ग्राम पंचायतों को मजबूत करने के साथ साथ वर्ष भर जंगलों की निगरानी करने को लेकर शपथपत्र पेश करें। कोर्ट के आदेश के क्रम में सरकार द्वारा शपथपत्र पेश किया, लेकिन शपथपत्र में खाली पड़े पदों पर पदोन्नति व नई भर्ती का कोई जिक्र नहीं किया गया। जैसे कब भर्ती होगी, कितने पदों पर होगी और कितने पद रिक्त हैं। इस पर कोर्ट ने पीसीसीएफ को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए है।
पूर्व में कोर्ट ने इन द मैटर आफ प्रोटेक्शन आफ फॉरेस्ट एरिया फाॅरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ से सम्बंधित मामले को जनहित याचिका के रूप में 2018 व 2021 में वनों में लगी आग पर स्वतः संज्ञान लिया था। जंगलों को आग से बचाने के लिए कोर्ट ने पूर्व में कई दिशा निर्देश जारी किए थे। लेकिन 2021 में और अधिक आग लगने के कारण यह मामला दोबारा से उजगार हुआ।
पर्यावरण मित्र अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने पूर्व में हाईकोर्ट के समक्ष प्रदेश के जंगलों में लग रही आग को लेकर मुख्य समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का हवाला पेश किया था, जिस पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर राज्य सरकार को वन, वन्यजीव व पर्यावरण को बचाने के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए थे। जबकि हाइकोर्ट ने 2016 में भी जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइड लाइन जारी की थी। कोर्ट ने जारी दिशा निर्देशों में कहा था कि गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित किए जाए। जिस पर आज तक अमल नही किया गया।
सरकार जहां आग बुझाने के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग कर रही है उसका खर्चा बहुत अधिक है और पूरी तरह से आग भी नही बुझती है, इसके बजाय गांव स्तर पर कमेटियां गठित की जाए। अभी तक उस आदेश का अनुपालन तक नही हुआ। वर्तमान में राज्य सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का सहारा ले रही है। जो काफी मंहगा है।
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(Udaipur Kiran) / लता
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