जयपुर, 23 सितंबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि सहायता प्राप्त संस्थानों का अनुदान कम करने से छात्रों की शिक्षा प्रभावित होती है। ऐसे में सरकार संस्थान का पक्ष सुने बिना अनुदानित शिक्षण संस्थानों का अनुदान कम नहीं कर सकती। अदालत ने कहा कि राजस्थान गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थान अधिनियम की धारा 7(1) में प्रावधान है कि अनुदान को संस्थानों की ओर से अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है और राज्य इसे कभी भी रोक सकती है। यह केवल प्रारंभिक चरण में लागू होता है और जब अनुदान स्वीकृत हो जाता है तो उसमें किसी भी तरह की कमी करने से पूर्व राजस्थान गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं (मान्यता, सहायता अनुदान और सेवा शर्तों आदि) के नियम 18 के तहत प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना होगा। इसके साथ ही अदालत ने मामले में सरकार की ओर से अनुदान कम करने के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस अवनीश झिंगन ने यह आदेश वैदिक कन्या महाविद्यालय व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए।
अदालत ने कहा कि संबंधित संस्था द्वारा किसी भी सहायता का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान अनुदान की मंजूरी के प्रारंभिक चरण में लागू होगा। एक बार सहायता प्रदान हो जाने पर, श्रेणी बदलने या सहायता को रोकने या कम करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है। श्रेणी में परिवर्तन और सहायता अनुदान में कमी से संस्थान के छात्रों की शिक्षा को प्रभावित करते हैं। याचिका में अधिवक्ता अजीत मालू कहा गया कि उन्हें पूर्व में सरकार की ओर से अनुदान मिलता था, लेकिन बाद में उनका अनुदान कम का दिया गया। जबकि इससे पहले उनका पक्ष भी नहीं सुना गया। वहीं राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता आदित्य सिंह ने कहा कि अनुदान रोकने, कम करने या उसे निलंबित करने का सरकार को अधिकार है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है।
(Udaipur Kiran)