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हाई कोर्ट ने कहा- तलाक के केस में पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेषज्ञ की राय लेना गलत नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज, 14 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक की कार्यवाही में साक्ष्य के स्तर पर पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेषज्ञ की राय लेने के प्रिंसिपल जज फैमली कोर्ट हाथरस के आदेश को सही मानते हुए उसे बरकरार रखा।

अपीलकर्ता पत्नी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, हाथरस के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने पति द्वारा शुरू की गई तलाक की कार्यवाही में उसके द्वारा उसकी पत्नी के चिकित्सा जांच के लिए दिए आवेदन की अनुमति दी गई थी।

हाई कोर्ट में अपीलकर्ता पत्नी के वकील ने ट्रायल कोर्ट के चिकित्सा जांच की अनुमति को विभिन्न आधार पर चुनौती दी गई थी। पत्नी के खिलाफ अपने आदेश में ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर आपत्तियां उठाई गईं। इस आशंका के साथ कि वे मामले के अंतिम निपटान के दौरान प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

अपील में कहा गया कि सीएमओ हाथरस को उचित मेडिकल बोर्ड का गठन करना चाहिए था। इस तर्क पर न्यायालय ने पाया कि रिपोर्ट अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मांगी गई है, जो कि एक सरकारी सुविधा नहीं है। तदनुसार, न्यायालय ने निर्देश दिया कि चीफ मेडिकल अधिकारी हाथरस द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए, जिसमें योग्य न्यूरोलॉजिस्ट और मनोचिकित्सक के साथ-साथ ऐसे अन्य डॉक्टर शामिल होने चाहिए, जो जरूरी मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक हो।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने अपीलकर्ता पूजा की अपील पर कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित पहले का आदेश अंतरिम आदेश था और पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए साक्ष्य के स्तर पर मेडिकल जांच के लिए बुलाना सही था। उस हद तक ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के स्तर पर मेडिकल राय मांगने में कोई गलती नहीं की है। हाई कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में पक्षों का साक्ष्य समाप्त हो चुका है। तदनुसार, पत्नी द्वारा दायर अपील को इस निर्देश के साथ कोर्ट ने निस्तारित किया कि सीएमओ हाथरस द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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