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जॉयंट एंट्रेंस मेडिकल पीजी परीक्षा: 2010 के बाद के ओबीसी प्रमाणपत्र धारकों को काउंसलिंग से बाहर करने का हाई कोर्ट ने दिया आदेश

कोलकाता, 21 मई (Udaipur Kiran) । कलकत्ता हाइ कोर्ट ने जॉयंट एंट्रेंस (मेडिकल स्नातकोत्तर) परीक्षा को लेकर महत्वपूर्ण आदेश दिया है। अदालत ने निर्देश दिया है कि ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए नया पैनल तैयार किया जाए और स्नातकोत्तर स्तर की काउंसलिंग उसी पैनल के आधार पर संपन्न की जाए। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वर्ष 2010 के बाद जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्र मान्य नहीं होंगे, और ऐसे अभ्यर्थियों को काउंसलिंग में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति कौशिक चंद्र की एकल पीठ में हुई। अदालत के सामने यह मामला उस समय आया, जब 2024 में हुई मेडिकल स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण कुछ अभ्यर्थियों ने दावा किया कि वे काउंसलिंग के लिए योग्य होने के बावजूद बुलाए नहीं गए। इस संबंध में मामनी साउ सहित कई अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील रघुनाथ चक्रवर्ती और सैकत ठाकुरता ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता न केवल परीक्षा में उत्तीर्ण हुए थे, बल्कि काउंसलिंग प्रक्रिया के लिए भी चयनित हुए थे। फिर भी उन्हें काउंसलिंग में शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण वे किसी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं ले सके। इसी बीच वर्ष 2025 की प्रवेश प्रक्रिया की अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।

बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग के निदेशक को दो घंटे के भीतर अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया। दोनों अधिकारियों ने अदालत को बताया कि वर्ष 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्र पहले ही अवैध घोषित कर दिए गए हैं, जिसके चलते काउंसलिंग प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हुई।

इस पर न्यायमूर्ति चंद्र ने स्पष्ट किया कि 2010 से पहले जारी ओबीसी प्रमाणपत्रों पर कोई आपत्ति नहीं है। अदालत ने निर्देश दिया कि ऐसे प्रमाणपत्र धारक जिनके समुदाय वर्ष 2010 तक ओबीसी सूची में शामिल थे (कुल 66 समुदाय), उन्हें शामिल कर नया ओबीसी पैनल बनाया जाए और काउंसलिंग उसी आधार पर संपन्न कराई जाए।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को हाइ कोर्ट ने पहले ही रद्द कर दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, लेकिन फिलहाल हाइ कोर्ट के निर्णय पर कोई स्थगन नहीं है। आरोप है कि 2010 के बाद जितने ओबीसी बनाए गए उनमें हिंदू बंगालियों को निकाल कर केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों को अलग-अलग कैटेगरी क्रिएट कर सर्टिफिकेट जारी किया गया है।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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