
जबलपुर, 15 मई (Udaipur Kiran) । कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में गुरुवार सुबह 10:30 बजे सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की डबल बेंच-जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला ने सख्त नाराजगी जताते हुए FIR में सुधार करने के आदेश दिए हैं। उन्होंने मंत्री विजय शाह के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ‘खानापूर्ति’ करार दिया है। जस्टिस श्रीधरन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह कोई हत्या का जटिल मामला नहीं है,जिसमें गवाहों की तलाश करनी पड़े या परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की पड़ताल करनी हो। मंत्री का बयान एक वीडियो के रूप में सार्वजनिक है और उसमें उन्होंने क्या कहा, वह भी स्पष्ट है। ऐसे में FIR में उस वीडियो की सामग्री,वक्तव्य और आपत्तिजनक हिस्सों को क्यों नहीं जोड़ा गया?
कोर्ट ने कहा कि जब एफआईआर की बुनियाद ही कमजोर रखी जाएगी, तो भविष्य में यह पूरा मामला आरोपी के पक्ष में झुक जाएगा और न्याय की प्रक्रिया कमजोर हो जाएगी। हाईकोर्ट ने इस बात पर खास जोर दिया कि दर्ज की गई एफआईआर में न तो घटना का तथ्यात्मक वर्णन किया गया है,न ही यह बताया गया है कि किस कृत्य के कारण किन धाराओं में अपराध दर्ज किया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि FIR के पैरा 12 में केवल हाईकोर्ट के आदेश को हूबहू कॉपी-पेस्ट कर दिया गया है, जबकि कानूनी प्रक्रिया की दृष्टि से जरुरी था कि वहां पर उस कथन,वीडियो क्लिप या सार्वजनिक बयान का उल्लेख किया जाता,जिस आधार पर मामला दर्ज हुआ है। कोर्ट ने कहा कि पहली रिपोर्ट में वह धाराएं ही शामिल नहीं की गईं, जिनका स्पष्ट निर्देश बुधवार को कोर्ट ने दिया था। अदालत ने कहा है कि FIR इस तरह ड्राफ्ट की गई है मानो किसी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई हो और इससे स्पष्ट होता है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेने में विफल रही है।
महाधिवक्ता द्वारा ‘जांच जारी है’ कहे जाने पर कोर्ट ने स्पष्ट लहजे में कहा कि “यह हत्या का मामला नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक भाषण का मामला है, जिसकी जांच में अधिक समय नहीं लगना चाहिए।” कोर्ट की इस सख्ती से पूरे प्रशासनिक तंत्र पर दबाव बढ़ गया है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला ने सख्त नाराजगी जताते हुए FIR दोबारा दर्ज करने के आदेश दिए।
सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत
हाईकोर्ट के आदेश के बाद उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को लेकर मंत्री विजय शाह ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जहां से उन्हें झटका लगा है। उनका मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की बेंच के सामने मेंशन किया गया। सीजेआई ने बयान पर नाराजगी जताई और कहा कि ठीक है कल देखेंगे कि क्या करना है। आप हाई कोर्ट को बता दीजिए कि इसकी सुनवाई हम कल करेंगे। सीजेआई ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सीजेआई ने कहा कि ऐसी टिप्पणी करने की क्या जरूरत है. यह कोई समय है. उच्च पद पर बैठे व्यक्ति से ऐसे स्टेटमेंट की उम्मीद नहीं की जा सकती, जब देश ऐसे समय से गुजर रहा हो।
इन धाराओं में है एफआईआर
हाईकोर्ट के आदेश पर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए विवादित बयान पर उनके खिलाफ महू के मानपुर थाने में बुधवार देर रात एफआईआर दर्ज की गई है। अपराध 188/2025 धारा 152, 196(1)(ख), 197(1)(ग) बीएनएस के तहत एफआईआर दर्ज की गई.
बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 152 :
यह देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्यों को भी अपराध मानती है। इसमें उम्रकैद या सात साल तक के कारावास के दंड का प्रविधान है। अलगाव, सशस्त्र विद्रोह और विध्वंसक गतिविधियों को भड़काने वाले कृत्यों को अपराध मानती है।
बीएनएस 196(1)(ख) :
धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करने से संबंधित है। इसमें पांच वर्ष के कारावास का प्रविधान है।
बीएनएस 197(1)(ग) :
राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों से संबंधित है। इसमें किसी भी समूह की भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा को संदेह में लाने वाले आरोप, दावे या कथन शामिल हैं। इसमें तीन वर्ष के कारावास का प्रविधान है।
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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक
