नैनीताल, 11 जुलाई (Udaipur Kiran) । हाई कोर्ट ने राज्य में भूमि की धोखाधड़ी व अवैध खरीद फरोख्त पर अंकुश लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार से पूछा है कि 2014 में राज्य सरकार ने लैंड फ्रॉड समन्वय कमेटी गठित की थी, वह किस तरह से कार्य कर रही हैं और अभी तक कमेटी के पास कितने लैंड फ्रॉड से संबंधित शिकायतें आई हैं। कोर्ट ने 16 जुलाई तक स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
मामले के अनुसार देहरादून निवासी सचिन शर्मा ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने 2014 में प्रदेश में लैंड फ्रॉड व जमीन से जुड़े मामलों में होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिए लैंड फ्रॉड समन्वय समिति का गठन किया था। इसके अध्यक्ष कुमाऊं व गढ़वाल रीजन के कमिश्नर बनाए गए थे और कमेटी में परिक्षेत्रीय पुलिस उप महानिरीक्षक, आईजी, अपर आयुक्त, संबधित वन संरक्षक, संबंधित क्षेत्र के नगर आयुक्त व एसआईटी के अधिकारी भी थे। इनका कार्य राज्य में हो रहे लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी के मामलो की जांच करना, जरूरत पड़ने पर उसकी एसआईटी से जांच कराकर मुकदमा दर्ज कराना था। इसके बावजूद आज की तिथि में लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी के जितनी भी शिकायतें पुलिस को मिल रही हैं, पुलिस खुद ही इन मामलों में अपराध दर्ज कर रही है। शासनादेश के अनुसार ऐसे मामलों को लैंड फ्रॉड समन्वय समिति के पास जांच के लिए भेजा जाना था।
याचिका में कहा गया है कि पुलिस को न तो जमीन से जुड़े मामलों के नियम पता हैं और न ही ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने की शक्ति है। शासनादेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जब ऐसा मामला पुलिस के पास आता है तो लैंड फ्रॉड समन्वय समिति को भेजा जाये। वही इसकी जांच करेगी। अगर फ्रॉड हुआ है तो संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश देगी। वर्तमान में कमेटी का कार्य थाने से हो रहा है। जो शासनादेश में दिए गए निर्देशों के विरुद्ध है। इस पर रोक लगाई जाए।
(Udaipur Kiran) / लता / Satyawan Yadav / दधिबल यादव