प्रयागराज, 25 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग बेटी के मां द्वारा लगाए गए क्रूरता के आरोपों को पुष्ट करने वाले अखंडित साक्ष्य हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए पर्याप्त आधार हैं।
दोनों पक्षों ने 1999 में शादी की और 2000 एवं 2003 में उनके दो बच्चे हुए। पारिवारिक न्यायालय के समक्ष यह स्थापित हुआ कि दोनों पक्ष 2011 तक साथ-साथ रहते थे। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए प्रतिवादी पति ने अपीलकर्ता पर हमला किया। अपीलकर्ता पर व्यभिचार का भी आरोप लगाया। हालांकि अपीलकर्ता दक्षिण अफ्रीका वापस नहीं जाना चाहती थी लेकिन प्रतिवादी ने उसे अपने साथ आने के लिए राजी किया। एक बार जब अपीलकर्ता अपने बच्चों के साथ दक्षिण अफ्रीका लौट गई, तो आरोप है कि क्रूर व्यवहार जारी रहा।
प्रतिवादी पति की अनुपस्थिति के कारण फैमिली कोर्ट ने एकपक्षीय कार्यवाही की। साक्ष्य में नाबालिग बेटी ने मां और बच्चों पर शारीरिक हमलों का वर्णन करते हुए क्रूरता के आरोपों का समर्थन किया। बेटी ने कहा कि प्रतिवादी पति अपीलकर्ता और उसके बच्चों को कई दिनों तक बंद करके रखता था। इसलिए वे 2013 में स्थायी रूप से वापस आ गए। न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी द्वारा किसी भी स्तर पर इस तरह के साक्ष्य से इनकार नहीं किया गया और इस तरह के साक्ष्य के खिलाफ कोई सामग्री पेश नहीं की गई।
बरेली के पारिवारिक न्यायालय/फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या 1 के न्यायाधीश ने तलाक की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि क्रूरता के आरोप अस्पष्ट प्रकृति के थे। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनाडी रमेश की पीठ ने कहा कि हालांकि तलाक के आधार के रूप में ’क्रूरता’ को परिभाषित करने के लिए कोई सीधा फार्मूला नहीं है लेकिन क्रूरता के सम्बंध में नाबालिग बेटी का साक्ष्य पर्याप्त साक्ष्य है। क्योंकि इसे कभी चुनौती नहीं दी गई या इसका खंडन नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा कि तलाक के लिए एक आधार के रूप में क्रूरता को परिभाषित करना कठिन है और साथ ही कोई सीधा-सादा फार्मूला नहीं अपनाया गया है लेकिन एक बार जब पक्षों की नाबालिग बेटी ने विशेष रूप से यह बयान दे दिया कि प्रतिवादी ने कई बार उसकी मां का गला घोंटने की कोशिश की थी और वह आदतन अपने परिवार को बाहर से बंद कर देता था और कई दिनों तक उन्हें उस स्थिति में खुद के हाल पर छोड़ देता था तो उस अखंडित साक्ष्य के सामने क्रूरता का कोई अन्य सबूत पेश करने की आवश्यकता नहीं थी। हाई कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए दोनों पक्षों को तलाक की अनुमति दे दिया जो 11 वर्षों से अधिक समय से अलग रह रहे थे।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / पवन कुमार श्रीवास्तव