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हाईकोर्ट ने दंडात्मक औजार के रूप में काली सूची में डालने पर अधिकारियों की निंदा की

साकेंतिक फोटो

प्रयागराज, 27 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल दुर्लभ मामलों में काली सूची में डालने की सजा दी जानी चाहिए। क्योंकि यह किसी व्यक्ति को व्यवसाय करने के अधिकार से वंचित करता है। हाईकोर्ट ने काली सूची में डालने को एक दंडात्मक टूल की तरह इस्तेमाल करने पर अधिकारियों की निंदा की। न्यायालय ने कहा कि यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि काली सूची में डालने की अवधि व्य​क्ति की ओर से की गई गलती के अनुपात में होनी चाहिए।

यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति शेखर बी. सर्राफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने अधीक्षण अभियंता (सामग्री प्रबंधन-I), विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, ऊर्जा, विक्टोरिया पार्क, मेरठ के वी-मार्क इंडिया लिमिटेड को काली सूची में डालने के आदेश को रद्द कर दिया। मामले में वी मार्क इंडिया लिमिटेड को विद्युत वितरण निगम लिमिटेड ने तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पर काली सूची में डाल दिया गया था। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।

दावा किया कि उसे समिति की रिपोर्ट पर पक्ष रखने का मौका दिए बिना काली सूची डाल दिया गया। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट याचिकाकर्ता को प्रदान की जानी चाहिए थी और तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट याची को पक्ष रखने का अवसर दिया जाना चाहिए था। ऐसा नहीं किया जाना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

न्यायालय ने याची को सुनवाई का अवसर देने और तर्कसंगत आदेश पारित करने के लिए सम्बंधित प्राधिकरण को निर्देश के साथ आक्षेपित आदेश रद्द कर दिया। साथ ही निर्देश दिया कि समूची प्रक्रिया दो महीने में पूरी की जानी चाहिए। आक्षेपित आदेश रद्द होने की वजह से कानून के अनुसार याची सरकारी निविदा में भाग ले सकता है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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