प्रयागराज, 21 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन अपराधों के ऐसे पीड़ितों को समर्थन देने के महत्व पर जोर दिया जो समाज का कमजोर वर्ग है। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने कहा कि क्योंकि इन पीड़ितों को मानसिक आघात, सामाजिक हाशिए पर होने और संसाधनों की कमी सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो न्याय पाने की उनकी क्षमता में बाधा डालते हैं।
कोर्ट ने यह आदेश 14 वर्षीय बेटी की तस्करी के आरोपी पिता राजेन्द्र प्रसाद की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए दिया है। पिता चार नवम्बर 2022 से जेल में बंद है। उसके खिलाफ मुकदमा थाना चौबेपुर, वाराणसी में दर्ज है।
कोर्ट ने कहा कि इसलिए कानूनी सहायता, चिकित्सा देखभाल और परामर्श जैसी वैधानिक सहायता प्रणालियां इन बच्चों को कानूनी प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से संचालित करने व सशक्त बनाने के लिए आवश्यक हो जाती हैं।
हाईकोर्ट ने कहा, “कानून द्वारा गारंटीकृत सहायता प्रणालियों के अभाव में पाक्सो एक्ट के तहत यौन अपराधों के पीड़ित बच्चे सक्षम न्यायालय के समक्ष अपने मामलों को प्रभावी ढंग से नहीं चला सकते हैं… यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों का सशक्तिकरण न्याय की उनकी खोज में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। और यह उनके वैधानिक अधिकारों के फलस्वरूप प्राप्त किया जा सकता है। पाक्सो अधिनियम द्वारा अदालती कार्यवाही के दौरान यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों को दिए गए अधिकारों से वंचित करना कानून के विधायी इरादे को पराजित करेगा और न्याय की विफलता का कारण बनेगा।“
कोर्ट ने ये टिप्पणियां एक ऐसे व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए की, जिस पर पैसे के लिए अपनी 14 वर्षीय बेटी की तस्करी करने का आरोप है। मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने पाया कि पीड़िता को किसी सहायक व्यक्ति और कानूनी परामर्शदाता के अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी।
इसे देखते हुए, न्यायालय ने अपने आदेश में पुलिस, बाल कल्याण समिति, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, चिकित्सा अधिकारी और जिला प्रशासन पुलिस सहित विभिन्न प्राधिकारियों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे पीड़ितों को उनका हक प्राप्त हो। हाईकोर्ट ने इस आदेश की प्रति डीजी पुलिस, एडीजीपी अभियोजन, महिला एवं बाल विकास लखनऊ को भेजने का निर्देश दिया है।
—————
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे