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हाईकोर्ट ने पूछा, राजस्व कोर्ट कम्प्यूटरीकृत प्रबंधन सिस्टम पोर्टल पर प्रदेश के कितने गांव अपलोड नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट

–पोर्टल पर गांवों को अपलोड न करने की कोर्ट ने मांगी सफाई, गांवों का डाटा पेश करने का निर्देश

–कहा, पोर्टल पर अपलोड न करना अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप, मूल अधिकारों का उल्लंघन

प्रयागराज, 19 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कमिश्नर-सचिव उप्र राजस्व परिषद लखनऊ को प्रदेश के ऐसे सभी गांवों की संख्या का डाटा पेश करने का निर्देश दिया है जिनको अभी तक राजस्व कोर्ट कम्प्यूटरीकृत प्रबंध सिस्टम पोर्टल पर अपलोड नहीं किया गया है। कोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर गांव कोड को पोर्टल पर अपलोड करने के प्रक्रिया की जानकारी मांगी है। साथ ही गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करने का कारण स्पष्ट करने को कहा है। याचिका की अगली सुनवाई 30 सितम्बर को होगी।

कोर्ट ने कहा गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करना अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप है और वादकारी के मूल अधिकारों का हनन है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने बलिया के आदित्य कुमार पाण्डेय की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।

मालूम हो कि, सिकंदरपुर गर्वी के गांव डुमराहर दायरा व डुमराहर खुर्द दायरा की पैमाइश कर कम्प्यूटरीकृत करने के लिए एसडीएम के समक्ष राजस्व संहिता की धारा 22/24 के तहत अर्जी दी गई। एसडीएम ने राजस्व निरीक्षक-लेखपाल को सर्वे कर रिपोर्ट पेश करने तथा केस दर्ज कर नंबर देने का आदेश दिया। याची ने निर्धारित शुल्क एक हजार जमा किया। तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी न तो केस पंजीकृत किया गया और न ही केस नंबर दिया गया।

एसडीएम वित्त एवं लेखा ने बताया कि कमिश्नर-सचिव राजस्व परिषद को पोर्टल पर गांव का कोड दर्ज करने के लिए पत्र लिखा गया है। अनुस्मारक भी दिया गया है। किंतु गांव का कोड पोर्टल पर अपलोड न होने के कारण केस पंजीकृत नहीं हो सका है और केस नंबर भी तय नहीं हुआ। इसलिए केस निस्तारित नहीं हो सका है।

कोर्ट ने कहा, पुराने कानून में केस तय करने की कोई समय सीमा नहीं थी। किंतु राजस्व संहिता में संक्षिप्त विचारण वाले मामलों की अवधि निश्चित है। धारा 24 का केस तय करने की अवधि तीन माह तय है। किंतु जो केस तीन माह में तय होना चाहिए वह तीन साल बीतने के बाद भी पंजीकृत नहीं किया जा सका है। कोर्ट ने कहा अर्जी दाखिल करते ही कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए और समय के भीतर केस का निस्तारण किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि गांव का कोड पोर्टल पर अपलोड न होना न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करना है। साथ ही यह वादकारी के अनुच्छेद 14, 21 के मूल अधिकारों व अनुच्छेद 300ए के तहत सम्पत्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

कोर्ट ने कहा कि गांव पोर्टल पर अपलोड न किए जाने पर ऑफलाइन सुनवाई की जा सकती थी। कोर्ट ने मामले को गम्भीरता से लिया और कमिश्नर-सचिव उप्र राजस्व परिषद लखनऊ को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करने की सफाई मांगी है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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