कानपुर, 19 जुलाई (Udaipur Kiran) । हार्निया होने से लोगों को काफी तकलीफें झेलनी पड़ती है और अगर हार्निया बड़ी हो गई तो पहले के समय में उसका ऑपरेशन काफी जटिल हो जाता था। यह जटिलता इस कारण होती थी कि पेट में जाली लगाने से पहले पेट को बंद करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। वहीं, अब ई-टेप तकनीक से दूरबीन विधि का प्रयोग कर सिर्फ 10 एमएम का छेद कर पूरा ऑपरेशन कर सकते हैं। यह बातें शुक्रवार को रोहतक के डॉ. विनोद जागड़ा ने कही।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार को अत्याधुनिक हार्निया कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि होली हार्ट हॉस्पिटल रोहतक के डॉ. विनोद जागड़ा ने बताया कि हार्निया जैसी गंभीर बीमारी का ऑपरेशन अब दूरबीन विधि जो ई-टेप के नाम से भी जानी जा रही है उससे बड़ी आसानी से संभव हो गया है। वहीं, पहले चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता था। इसमें मरीज को ठीक होने पर लगभग तीन हफ्ते का समय लगता था, लेकिन आज के समय में जो दूरबीन विधि से ऑपरेशन होता है उसमें मरीज को तीसरे दिन ही अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। इसके ऑपरेशन से मरीज को कभी भी संक्रमण का खतरा भी नहीं होता है और न ही मरीजों को अधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा मरीज खुद को जल्द स्वस्थ समझने लगता है। टांकों का लंबा निशान भी पेट में नहीं पड़ता है।
हैलट अस्पताल के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. जीडी यादव ने बताया कि अस्पताल में प्रतिमाह पांच से छह मरीज 12 सेंटीमीटर से भी अधिक बड़ी हार्निया से पीड़ित आते हैं, जिसकी वजह से मरीजों को चलने-फिरने, उठने-बैठने, जोर से बोलने, खाना खाने व मल त्याग करने समेत कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। डा. यादव ने बताया कि हैलट अस्पताल में मरीजों की फेशियोटेंस विधि से सर्जरी अभी तक की जाती थी, लेकिन अब इससे भी एडवांस तकनीक हार्निया के मरीजों के लिए आ गई है। बड़ी हार्निया की समस्या से पीड़ित मरीजों की अब ई-टेप तकनीक से सर्जरी की जाएगी। इसमें पेट की त्वचा के परतों के बीच में एक जाली लगाई जाएगी, जिसे मेस कहते है। यह दो प्रकार की होती है। एक डबल लेयर में होती है और दूसरी प्लेन होती है। दूरबीन विधि से होनी वाली इस सर्जरी में बड़े चीरे लगाने की जरूरत नहीं होगी। यदि यह ऑपरेशन निजी अस्पताल में कराया जाए तो इसमें 75 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक का खर्च आता है, लेकिन अब हैलट अस्पताल में इसका ऑपरेशन नि:शुल्क किया जाएगा।
केजीएमयू लखनऊ के प्रो. अवनीश कुमार ने बताया कि पहले के समय में मोटे मरीजों का हार्निया का ऑपरेशन करना बड़ा कठिन रहता था, क्योंकि पेट को सिलने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। कभी-कभी जो बड़ी हार्निया हो जाती थी तो उनका ऑपरेशन करना भी संभव नहीं होता था। ऐसे मरीजों के लिए ये विधि सबसे कारगार साबित हुई है।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / अजय सिंह / प्रभात मिश्रा