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नई दिल्ली, 07 फरवरी (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है जिसमें हेमा कमेटी के समक्ष दर्ज गवाहों के बयानों को एफआईआर के रूप में मानकर जांच का निर्देश दिया गया था। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र इसकी अनुमति देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना मिलने के बाद पुलिस अधिकारी कानून के तहत आगे बढ़ने के लिए बाध्य हैं। केरल हाई कोर्ट ने रिपोर्ट के आधार पर कहा था कि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के यौन शोषण और उत्पीड़न से जुड़े कई मामले सामने आए हैं। केरल हाई कोर्ट ने हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद कहा था कि कमेटी की ओर से दर्ज किए गए गवाहों के बयान संज्ञेय अपराधों के होने का खुलासा करते हैं। इसलिए कमेटी के समक्ष दिए गए बयानों को धारा 173 के तहत सूचना के रूप में माना जाएगा।
दरअसल, नवंबर 2017 में जस्टिस हेमा कमेटी के सदस्यों ने जांच शुरू की थी। इस कमेटी ने एक बयान जारी करके कहा था कि गोपनीयता बनाये रखी जाएगी, जिसके बाद 80 से ज्यादा महिलाओं ने कमेटी के सामने गवाही देकर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के माहौल के बारे में बताया था। कोर्ट ने 21 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह याचिका फिल्म निर्माता साजिमोन परायिल और दो अभिनेताओं ने दायर की थी।
(Udaipur Kiran) /संजय
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
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