नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो गई। मामले की अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच यह तय करेगी कि विस्तृत सुनवाई जरूरी है या नहीं। अगर जरूरी है तो उसमें मुख्य कानूनी सवाल क्या होंगे।
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने भारतीय दंड संहिता और भारतीय न्याय संहिता में वैवाहिक रेप के प्रावधानों को रखा। करुणा नंदी ने कहा कि वैवाहिक रेप के संबंध में दिए गए अपवाद को निरस्त किया जाना चाहिए। तब कोर्ट ने कहा कि आप कह रही हैं कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं। कोर्ट ने कहा कि संसद ने इस प्रावधान को पारित करते समय यही सोचा कि अगर 18 साल से ज्यादा की पत्नी से वो यौन संबंध बनाता है तो वो रेप नहीं होगा।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग का विरोध किया है। मौजूदा कानून के मुताबिक पत्नी की इच्छा के बगैर जबरन संबंध बनाने पर भी पत्नी अपने पति पर बलात्कार का मुकदमा नहीं कर सकती। सरकार ने कानून में पति को मिली इस छूट का समर्थन किया है। केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा है कि इसका मतलब ये नहीं है कि वैवाहिक संबंधों में पत्नी की इच्छा का कोई महत्व नहीं है। सरकार का कहना है कि अगर पत्नी की इच्छा के बिना पति जबरन संबंध बनाता है तो ऐसी सूरत में पति को सजा देने के लिए पहले से वैकल्पिक कानूनी प्रावधान है। ऐसी स्थिति में घरेलू हिंसा कानून, महिलाओं की गरिमा भंग करने से जुड़े विभिन्न प्रावधान के तहत पति पर केस दर्ज किया जा सकता है लेकिन इस स्थिति की तुलना उस स्थिति से नहीं की जा सकती है, जहां बिना वैवाहिक संबंधों के कोई पुरुष जबरन किसी महिला के साथ संबंध बनाता है। वैवाहिक संबंधों और बिना वैवाहिक के बने ऐसे संबंधों में सजा एक नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। 11 मई, 2022 को दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक रेप के मामले पर विभाजित फैसला दिया था। जस्टिस राजीव शकधर ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को असंवैधानिक करार दिया था जबकि जस्टिस सी हरिशंकर ने इसे सही करार दिया था।
(Udaipur Kiran) /संजय
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम