Assam

मत्स्य क्षेत्र पर सम्मेलन का राज्यपाल ने किया उद्घाटन

मत्स्य क्षेत्र पर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल डॉ लक्ष्मण प्रसाद आचार्य।
मत्स्य क्षेत्र पर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल डॉ लक्ष्मण प्रसाद आचार्य।

गुवाहाटी, 5 मई (Udaipur Kiran) । असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने सोमवार को असम प्रशासनिक स्टाफ कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय ‘मत्स्य क्षेत्र के विकास पर सम्मेलन, 2025’ का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन का आयोजन राजभवन, असम द्वारा मत्स्य पालन विभाग, असम सरकार के सहयोग से किया गया।

सम्मेलन का उद्देश्य देशभर के प्रमुख मत्स्य विशेषज्ञों, केंद्रीय संस्थानों के प्रमुखों (सीआईएफआरआई, सीआईएफए, एनडीएफबी), शिक्षाविदों, अनुसंधानकर्ताओं एवं असम के उद्यमियों को एक मंच पर लाकर मत्स्य क्षेत्र के समग्र विकास के लिए रणनीतियों पर विचार करना है।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल ने कहा कि असम की जल संसाधनों की प्रचुरता – नदियां, जलभराव क्षेत्र, तालाब और जलाशयों के कारण – मत्स्य क्षेत्र को आत्मनिर्भर और लाभकारी उद्योग में बदलने की अपार क्षमता है। उन्होंने कहा, “मत्स्य क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों परिवारों को आजीविका, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि प्रदान कर सकता है। यह सम्मेलन इस अपार संभावना को दिशा देने का प्रयास है।”

राज्यपाल ने मत्स्य क्षेत्र को ‘ब्लू इकोनॉमी’ का प्रमुख स्तंभ बताते हुए कहा कि आधुनिक विज्ञान, तकनीकी नवाचार और पर्यावरणीय सतत् तरीकों को इसमें सम्मिलित करना आवश्यक है। उन्होंने कहा, “मत्स्य पालन अब पारंपरिक व्यवसाय नहीं रह गया, यह पोषण और रोजगार देने वाला एक उभरता उद्योग है। युवाओं को इसमें जोड़ने की आवश्यकता है, जिससे असम को वैश्विक जलीय कृषि मानचित्र पर स्थापित किया जा सके।”

उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्य एवं जलीय अधोसंरचना विकास निधि (एफआईडीएफ), नीली क्रांति और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएस) जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं की भूमिका की भी सराहना की। असम में “घर-घर पुखुरी, घर-घर माछ” अभियान के माध्यम से छोटे पैमाने पर मछली पालन को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

राज्यपाल ने देशज प्रजातियों के संवर्धन और प्रजनन तकनीकों के विकास पर बल देते हुए कहा कि “हमारा जलीय कृषि उत्पादन अभी तक केवल कटला, रोहू और मृगल जैसे प्रमुख भारतीय कार्प्स पर केंद्रित है। सांस्कृतिक और पाक महत्व रखने वाली देशी प्रजातियां तकनीकी कमी के कारण उपेक्षित हैं। इन तकनीकी खाइयों को भरना आवश्यक है।”

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सम्मेलन वैज्ञानिक विचार-विमर्श और नीतिगत सहयोग का एक मंच बनकर असम को दक्षिण-पूर्व एशिया के ‘एक्वा हब’ के रूप में उभारने में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि सम्मेलन की सिफारिशों के रणनीतिक कार्यान्वयन से असम अगले 2-3 वर्षों में अपनी मछली उत्पादन क्षमता को 50 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।

राज्य के मत्स्य मंत्री कृष्णेंदु पॉल ने कहा कि वर्ष 2030 तक राज्य से सात लाख टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने चाय बगानों में मछली पालन की संभावनाओं के दोहन तथा बील मत्स्य पालन के विकास की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने वनों में स्थित जल स्रोतों के उपयोग पर भी जोर दिया, जो प्राकृतिक प्रजनन के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।

सम्मेलन में असम सरकार के मुख्य सचिव डॉ. रवि कोटा, राज्यपाल के विशेष कार्य अधिकारी प्रो. बेचन लाल, राज्यपाल के आयुक्त एवं सचिव एसएस मीनाक्षी सुंदरम, मत्स्य विभाग के आयुक्त एवं सचिव राकेश कुमार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक (मत्स्य विज्ञान) डॉ. जॉयकृष्ण जेना सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

सम्मेलन के पहले दिन पांच विषयगत सत्र आयोजित किए गए, जिनमें जल संसाधन प्रबंधन, मत्स्य पालन में विविधता, मछली बीज उत्पादन की स्थिति, प्रजनन तथा विपणन प्रणाली जैसे प्रमुख विषयों पर चर्चा हुई। इन सत्रों का संचालन देशभर के प्रसिद्ध मत्स्य विशेषज्ञों और स्थानीय विशेषज्ञों द्वारा किया गया।

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(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश

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