

गुवाहाटी, 7 फरवरी (Udaipur Kiran) । असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने शुक्रवार काे यहांं माधवदेव अंतरराष्ट्रीय सभागार में आयाेजित तीन दिवसीय भारत बोध सम्मेलन के गुवाहाटी संस्करण का उद्घाटन किया। जेएनयू जैसे शैक्षणिक संस्थानों की ओर से आयोजित यह सम्मेलन भारत की समृद्ध सभ्यतागत विरासत और वैश्विक ज्ञान में इसके योगदान को समझने पर केंद्रित है।
इस अवसर पर राज्यपाल आचार्य ने ज्ञान की भूमि के रूप में भारत की कालातीत विरासत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “भारत की ज्ञान परंपरा ने पूरे विश्व का पोषण किया है। जब बाकी दुनिया अज्ञानता में भटक रही थी, तब भारत के ऋषियों और संतों ने ज्ञान के उच्चतम रूप का प्रसार किया और परिष्कृत मूल्यों के साथ मानवता को आकार दिया।” उन्होंने भारत बोध नामक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की, जो भारत के सार की खोज पर केंद्रित थी।
राज्यपाल आचार्य ने कहा कि भारत बोध एक विचार मात्र नहीं है, यह एक गहन अनुभव है तथा भारत की विरासत के विविध आयामों को समाहित करने वाला एक मूल्यवान विचार-विमर्श है। उन्होंने कहा कि भारत बोध के विचार-मंथन सत्र में भारत की सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, इतिहास, विज्ञान तथा अन्य विषयों पर चर्चा को बढ़ावा मिलेगा, जिससे राष्ट्र की बौद्धिक तथा सांस्कृतिक विरासत का समग्र दृष्टिकोण प्राप्त होगा।
राज्यपाल ने प्रतिनिधियों तथा प्रतिभागियों से भारत को स्वदेशी दृष्टिकोण से देखने तथा बौद्धिक चर्चाओं, सांस्कृतिक प्रदर्शनों तथा प्रदर्शनियों के आकर्षक मिश्रण के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत की जटिल रूपरेखा का सम्मान करने तथा उसका अन्वेषण करने का आग्रह किया। राज्यपाल ने कहा, भारत को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखकर हमारे समाज को उसकी जड़ों से दूर करने के प्रयास किए गए हैं, जिसके कारण हमारी पहचान में भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। हालांकि, भारत का सार अडिग है तथा परिणामस्वरूप इतिहास में विभिन्न सांस्कृतिक तथा राजनीतिक आक्रमणों के बावजूद राष्ट्र के लचीलेपन को दर्शाता है।
राज्यपाल ने इस अवसर पर प्राचीन विश्व में भारत की असाधारण उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला। भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है, जो कई अन्य सभ्यताओं से बहुत पहले सांस्कृतिक और बौद्धिक उन्नति का प्रतीक रही है। उन्होंने कहा, तक्षशिला और नालंदा जैसे हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय ज्ञान के उद्गम स्थल थे, जो दुनिया के सभी कोनों से विद्वानों को आकर्षित करते थे। भारत के प्राचीन ज्ञान पर और ज़ोर देते हुए राज्यपाल आचार्य ने उन अभूतपूर्व खोजों पर टिप्पणी की, जो भारत ने हज़ारों साल पहले की थीं, जिन्हें अब आधुनिक विज्ञान के माध्यम से फिर खोजा जा रहा है।
उद्घाटन समारोह में ईशान बोध ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रो. रजनीश कुमार मिश्रा और निश्रियास के अध्यक्ष गीताचार्य पुरंदर बरुवा सहित कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।
(Udaipur Kiran) / अरविन्द राय
