
-प्रदेश सरकार से मठ मंदिरों पर हक दिलाने की श्रीमहंत ने की मांग
हरिद्वार, 8 मई (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड के सभी मठ-मंदिरों पर देश की प्राचीन संन्यास परंपरा के सूत्रधार तीन अखाड़ों—आवाहन, अटल और महानिर्वाणी अखाड़ा—का ही अधिकार है। यह दावा श्री शम्भू पंच दशनाम आवाहन नागा संन्यासी अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने किया। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि प्रदेश के समस्त मठ-मंदिर इन तीनों अखाड़ों को सौंपे जाएं।
गोपाल गिरि महाराज ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अपने विचार रखे हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहा कि सन् 805 से 820 तक जगतगुरू शंकराचार्य भगवान केे समय सर्वप्रथम अखाड़ा श्री शम्भू पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के 550 नागाओं द्वारा पुनः अखाड़े की स्थापना की गई। मंदिरों व मठों का जीर्णोद्धार किया गया। मन्दिरों की सेवा-पूजा की जिम्मेदारी दशनाम ब्रह्मचारी सन्यासियों को दी गई, जिसमें उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, जम्बू-काश्मीर, हिमाचल, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा आदि में स्थित मठ-मढ़ी, मन्दिर के महन्त गिरी, पर्वत, सागर नामक दशनामी संन्यासी और आनन्द ब्रह्मचारियों की नियुक्ति स्वयं आदि गुरू शंकराचार्य जी के द्वारा की गई थी।
उन्होंने कहा कि भविष्य के लिये महन्तों की नियुक्ति व निष्कासित करने का अधिकार श्री शम्भू पंच दशनाम आवाहन नागा संन्यासी अखाड़ा, अटल अखाड़ा व महानिर्वाणी अखाड़े को सौंपा गया था। सन् 821 में शंकराचार्य जी का श्री क्षेत्र केदारनाथ धाम उत्तराखण्ड में कैलाशवास हो गया, जिनकी समाधि श्री क्षेत्र केदारनाथ धाम में है।
श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहा कि जगतगुरू स्वामी शंकराचार्य जी का जन्म सन् 789 ई. में वैशाख शुक्ल पक्ष दशमी को केरल राज्य में हुआ और 32 वर्ष की आयु में कैलाशवास हो गया। स्वामी शंकराचार्य जी का संबन्ध मात्र आवाहन, अटल व महानिर्वाणी अखाड़े से ही रहा। कारण की उस समय उक्त तीन अखाड़े ही थे। आवाहन अखाड़ा सन् 547 ई. में, अटल अखाड़ा सन् 647 ई. में और महानिर्वाणी अखाड़ा सन् 749 ई. में स्थापित हुआ। शेष सभी अखाड़े स्वामी शंकराचार्य जी के कैलाशवाश के बाद बने।
कहा कि आदि शंकराचार्य जी के कैलाशवास होने के 35 वर्ष के बाद आनन्द अखाड़ा सन् 856 ई. में आवाहन से निकलकर बना और उसके 48 वर्ष बाद सन् 904 ई. निरंजनी अखाड़ा आनन्द अखाड़े से बना। उसके 232 वर्ष बाद नैष्टिक ब्रह्मचारियों ने सन् 1136 में श्री पंच अग्नि अखाड़ा स्थापित किया। उसके 20 वर्ष के बाद सन् 1156 ई. में आवाहन व आनन्द अखाड़े से जूना अखाड़ा बना, इसलिये आनन्द, निरंजनी, अग्नि और जूना अखाड़े का जगतगुरू शंकराचार्य जी से प्रत्यक्ष कोई समबन्ध नहीं हैं।
श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहा कि जगतगुरू शंकराचार्य जी का संबंध आवाहन, अटल और महानिर्वाणी अखाड़े से ही था और सन् 800 से सन् 821 ई० तक वो इन तीन अखाड़ों के साथ ही रहे। उन्होंने कोई अखाड़ा नहीं बनाया। इन तीनों अखाड़े ने ही स्वामी शंकराचार्य जी की ओर से बौद्धाें से युद्ध किया और अखण्ड भारत के सभी सनातनी मठ, मढ़ी, मन्दिरों का जिर्णोद्धार कर पुनः निर्माण कराया। इस कारण से अखाड़ा श्री शम्भू पंच दशनाम आवाहन नागा सन्यासी अखाड़ा, अटल नागा संन्यासी अखाड़ा व महानिर्वाणी नागा सन्यासी अखाड़े का ही मठ-मढ़ी मंदिरों पर एकमात्र हक हैं। उन्होंने उत्तराखण्ड सरकार से तीनों अखाड़े नागा सन्यासियों के अखाड़ो को सभी मन्दिरों का हक दिलाया जायें और जो मठों मन्दिरों में अवैध कब्जा करे कमेटी बनाकर नागाओं के हक पर कब्जा किए हुए हैं उन मन्दिर व मठों से उनको तत्काल हटाया जाये।
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(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला
