West Bengal

सरकारी नौकरी करते हुए प्रमोटिंग व्यवसाय में संलिप्तता का आरोप, पांच साल की जांच के बाद बर्खास्त हुआ सरकारी अधिकारी

कोलकाता, 1 मार्च (Udaipur Kiran) ।

पश्चिम बंगाल सरकार के एक उच्च पदस्थ अधिकारी को निजी व्यवसाय में संलिप्त पाए जाने के आरोप में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। इस अधिकारी पर आरोप था कि वह सरकारी नौकरी में रहते हुए प्रमोटिंग व्यवसाय में सक्रिय था। पांच साल तक चली जांच के बाद आखिरकार सरकार ने उसे सेवा से हटा दिया। राज्य प्रशासन और कार्मिक विभाग की ओर से इस संबंध में एक आधिकारिक अधिसूचना भी जारी की गई है।

मामला 2020 में तब सामने आया जब अधिकारी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई। इसके बाद गृह विभाग और पहाड़ मामलों के विभाग ने संयुक्त रूप से जांच शुरू की। जांच में सामने आया कि उक्त अधिकारी के नाम पर एक ट्रेड लाइसेंस पंजीकृत था, जिसके जरिए वह प्रमोटिंग व्यवसाय संचालित कर रहा था। इसके अलावा, उसके बैंक खातों की जांच में भी व्यावसायिक लेनदेन के स्पष्ट प्रमाण मिले।

जांच में यह भी सामने आया कि आरोपित के नाम पर एक पंजीकृत कंपनी थी, जिसके माध्यम से वह जमीन और प्रमोटिंग से जुड़े व्यवसायों में सक्रिय रूप से शामिल था। सरकार ने उसे अपना पक्ष रखने का अवसर देते हुए दो बार कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज) जारी किया, लेकिन अधिकारी द्वारा दिए गए जवाब संतोषजनक नहीं पाए गए। इसके बाद, सरकार ने कार्रवाई करते हुए उसे सेवा से बर्खास्त करने का निर्णय लिया।

राज्य प्रशासन और कार्मिक विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकारी सेवकों को किसी भी प्रकार के निजी व्यवसाय में संलिप्त होने की अनुमति नहीं होती। चूंकि आरोपित अधिकारी ने इस नियम का उल्लंघन किया, इसलिए उसे सेवा से हटाने का निर्णय लिया गया। बताया जा रहा है कि वह ‘वेस्ट बंगाल पब्लिक सर्विस कमीशन’ की परीक्षा पास करके सरकारी सेवा में आया था, इसलिए इस फैसले की जानकारी पब्लिक सर्विस कमीशन को भी दे दी गई है।

इस मामले के बाद शिक्षा जगत से जुड़े कुछ लोगों ने सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। बंगीय शिक्षक एवं शिक्षाकर्मी समिति के नेता स्वप्न मंडल ने कहा, शिक्षकों के आचार संहिता में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे किसी अन्य व्यवसाय में संलिप्त नहीं हो सकते। लेकिन कई शिक्षक सरकारी संगठनों की आड़ में निजी ट्यूशन चला रहे हैं। सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती?

वहीं, तृणमूल समर्थित सरकारी कर्मचारी महासंघ के संयोजक प्रताप नायक ने सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए कहा, सरकारी कर्मचारी का किसी व्यवसाय में शामिल होना पूरी तरह अवैध और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला है। हम चाहते हैं कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई हो। यदि भविष्य में कोई और सरकारी कर्मचारी इस तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है, तो उसे भी इसी तरह सजा दी जानी चाहिए।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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