– करीब चार माह में हो जाएगी तैयार, 39 प्रतिशत निकलेगा तेल
कानपुर, 20 जुलाई (Udaipur Kiran) । सरसो की फसल में माहू रोग किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या रहती है। इस रोग के लगने से फसल का उत्पादन गिर जाता है जिससे किसानों को नुकसान होता है। इसको देखते हुए चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) ने गोवर्धन नाम की सरसो की नई प्रजाति को इजाद किया है। इस प्रजाति पर माहू रोग का प्रभाव नहीं पड़ेगा और करीब चार माह में तैयार हो जाएगी। इसके साथ ही शोधकर्ताओं के मुताबिक तेल भी 39 प्रतिशत निकलेगा।
चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ. पीके सिंह ने शनिवार को बताया कि आमतौर पर सरसो की बुआई सितम्बर माह में की जाती है। ऐसे में खरीफ की फसल वाले खेत खाली नहीं हो पाते थे और देर से बुआई करने में उत्पादन सही से नहीं मिल पाता था। इसके साथ ही सरसो की फसल में माहू रोग किसानों के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय रहता है, क्योंकि माहू रोग से उत्पादन लगभग आधा रह जाता है और किसानों को लाभ नहीं मिल पाता। किसानों की इन समस्याओं को देखते हुए सीएसए में पिछले 11 साल से शोध चल रहा था कि सरसो की ऐसी प्रजाति इजाद की जाए जिसकी बुआई खरीफ की फसल कटने के बाद की जा सके और माहू रोग से भी सुरक्षित रहे। लंबे समय के शोध के बाद शोधकर्ताओं ने एक नई प्रजाति का इजाद किया जिसे गोवर्धन नाम दिया गया। सरसों की इस नई प्रजाति को लखनऊ में कुछ दिनों पहले हुई स्टेट वैराइटी कमेटी ने अपनी अनुमति दे दी है, अब इस प्रजाति का नोटिफिकेशन हो सके, इसके लिए कृषि मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा जाएगा। इसके बाद किसानों को हम जल्द से जल्द बीज उपलब्ध करा देंगे। देशभर के किसानों को बीज दिए जाने के लिए खाका खींचा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि सरसो की गोवर्धन प्रजाति को किसान भाई नवम्बर के आखिरी सप्ताह तक बुआई कर सकते हैं। इस समय तक खरीफ की फसल से खेत खाली हो जाते हैं। यह प्रजाति 120-130 दिनों में पककर तैयार हो जाएगी और सामान्य सरसो से इसमें तेल भी अधिक निकलेगा। इस प्रजाति में प्रति किलो ग्राम 39.5 प्रतिशत तेल निकलने की पूरी संभावना है। इसके साथ ही सरसो की फसल में किसानों के लिए अभिशाप कहे जाने वाले माहू रोग से यह प्रजाति पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी।
(Udaipur Kiran) / अजय सिंह / मोहित वर्मा