Madhya Pradesh

भगवान् अपने भक्तों पर कृपा कर उनके अहंकार का कर देते हैं समूल नाश

झाबुआ, 17 सितंबर (Udaipur Kiran) । भगवान् अपने भक्तों का अहंकार समूल नाश कर दिया करते हैं, ऐसा करते हुए भी वे उनको कभी अपमानित नहीं करते बल्कि उनपर अपनी कृपा करते हुए परम उपकार ही करते हैं। भगवान् श्री कृष्ण ने देवराज इन्द्र का शक्ति का अहंकार , उद्धव का ज्ञान का अहंकार और राजा बलि का दान का अहंकार भंग कर दिया, किंतु ऐसा करते हुए भी भगवान् ने उनपर अपनी अहैतुकि कृपा ही की।

उपरोक्त कथन श्रीमद्भागवत महापुराण के एकादश स्कंध में वर्णित उद्धव प्रसंग के दौरान डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा ने व्यासपीठ से व्यक्त किए। शर्मा मंगलवार को जिले के थान्दला में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अन्तर्गत आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत सप्ताह महोत्सव के छठवें दिन स्थानीय श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर सभागार में कथावाचन कर रहे थे।

शर्मा ने भागवत कथा वाचन करते हुए कहा कि एक तरफ जहां देवराज इन्द्र को अपनी शक्ति का और राजा बलि को अपने दानी होने का अहंकार था, वहीं दूसरी तरफ प्रभु के परम सेवक उद्धव को ज्ञान का अहंकार हो गया था। भगवान् श्री कृष्ण ने गोवर्धन पूजा उत्सव का विधान कर इधर देवराज इन्द्र के अभिमान को भंग किया, और अपने दो पग में पृथ्वी सहित आकाश नाप कर राजा बलि का दानी होने का अहंकार नाश कर दिया, वहीं दूसरी तरफ अपने परम सेवक उद्धव के ज्ञानी होने के अहंकार का भी समूल नाश कर दिया। भगवान् ने उद्धव को अपना संदेशवाहक बनाकर वृज गोपियों को ज्ञान प्रदान करने हेतु भेजा ओर अन्ततः ज्ञान योगी उद्धवजी श्रीवृजधाम से जब लौटकर आए तो एक ज्ञानी के बजाए प्रेमी भक्त के रूप में परिवर्तित हो कर वापस लौटे। केवल इतना ही नहीं बल्कि उद्धव चाहना करने लगे कि मैं श्री वृन्दावन में घांस हो जाऊं और कोई गोपी अपने पावन चरण रखकर मुझे प्रेम तत्व की संपूर्ण रुप से प्राप्ति करा दे। उधर दूसरी तरफ भगवान् श्री कृष्ण ने इन्द्र को परमात्म सत्ता का दिग्दर्शन कराते हुए उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति का भान करा दिया, साथ ही यह आभास भी करा दिया कि देव पूजा का महत्व है, किंतु उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है पृकृति के उपादानों की पूजा का विधान। भगवान् श्री कृष्ण ने अपने इन सभी प्रेमी भक्तों के अहंकार को समूल नष्ट कर दिया, किन्तु ऐसा करते हुए भी भगवान् श्री कृष्ण ने परम कृपा करते हुए उनपर उपकार ही किया था।

शर्मा ने कहा कि मनुष्य जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य भगवान् श्री कृष्ण की प्राप्ति करना है, किन्तु भगवान् की प्राप्ति में माया, मोह और अहंकार बड़ी बाधा के रूप में हमारे सामने आकर खड़े हो जाते है। हमें इनका परित्याग कर प्रभु के पावनतम चरणों में स्वार्थ रहित भावना से इस तरह प्रेम करना होगा, जैसे कि वृज की गोपाङ्गनाओं ने अपने हृदय की गहराइयों से केवल भगवान् श्री कृष्ण को ही प्रेम किया था। गोपी भाव से प्रभु को किया गया प्रेम या भक्ति ही सर्वोत्कृष्ट भक्ति है।

कथा मे भागवत धर्म का भी उल्लेख किया गया।

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(Udaipur Kiran) / उमेश चंद्र शर्मा

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