
— श्री काशी विश्वनाथ धाम में शिवार्चनम मंच से मां गंगा एवं महादेव की होगी स्तुति
वाराणसी,03 मई (Udaipur Kiran) । गंगा सप्तमी महोत्सव में रविवार को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से विशिष्ट आयोजन किए जायेंगे। इसमें प्रातः काल ललिता घाट पर गंगाभिषेक एवं प्रांगण स्थित गंगा मंदिर में विशेष आराधना संपन्न होगी। सायंकाल में मंदिर चौक स्थित शिवार्चनम मंच से मां गंगा एवं महादेव की स्तुति में संगीतमय भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा।
मंदिर न्यास के अनुसार मां गंगा को सनातन परंपरा में ब्रह्मदेव के कमंडल से उत्पन्न माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट सगर के अश्वमेध यज्ञ के आयोजन में अश्व चोरी हो गया। सम्राट सगर के पुत्रों ने अश्व को ढूंढते समय कपिल मुनि से धृष्टता कर दी। क्रोधित कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को भस्म कर दिया। कालांतर में सम्राट सगर के वंशज भगीरथ ने अपने इन भस्म बांधवों की मुक्ति हेतु ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव ने मुक्ति का उपाय मां गंगा की जलधारा को बताया। परंतु मां गंगा का वेग पृथ्वी के लिए असहनीय था अतः मां गंगा का धरावतरण असंभव प्रतीत होता था। दृढ़ संकल्प के स्वामी सम्राट भगीरथ ने हार नहीं मानी। भागीरथ ने इस समस्या के समाधान हेतु महादेव शिव की अखण्ड साधना की। महादेव के प्रसन्न होने पर भगीरथ ने अनुरोध किया कि गंगा जी के वेग को महादेव अपनी जटाओं में धारण कर मंद कर दें जिससे पृथ्वी माता, गंगा जी का प्रवाह धारण कर सकें। महादेव ने भगीरथ की याचना स्वीकार कर ली। इस प्रकार गंगा मां का धरावतरण संभव हो सका। ब्रह्मकमंडल से गंगा जी के सरिता स्वरूप में प्राकट्य का उत्सव गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।
—काशी की गंगा
पौराणिक कथानक में गंगा रहस्य की एक कथा के अनुसार पाण्ड्य नरेश पुण्यकीर्ति ने गंगा जी से यह वर मांगा था कि वह प्रतिदिन गंगा मां का देवी स्वरूप में साक्षात दर्शन कर सकें। तब गंगा जी ने पुण्यकीर्ति से कहा कि इसके लिए पुण्यकीर्ति को गंगा जी के घर में निवास करना होगा। पाण्ड्य नरेश की जिज्ञासा पर गंगा जी ने यह रहस्य बताया कि उनका घर काशी में है। गंगा जी ने बताया कि अपने प्रवाह के क्रम में वह शिव की जटाओं से मुक्त हो हिमालय शिखरों से उतर प्रयाग होते हुए काशी की सीमा पर पहुंचीं। प्रयाग में यमुना की जलराशि को भी धारण कर मां गंगा का स्वरूप अत्यंत विशाल हो गया था। मां गंगा बड़े बड़े नगर, वन, पर्वत इत्यादि प्रवाहित कर मंथर गति से काशी की सीमाओं तक पहुंचीं। काशी के पुराधिपति भगवान विश्वनाथ जी ने विशाल जलराशि ले कर भूमि को स्वयं में समाहित करती हुई गंगा जी के प्रवाह से काशी के अस्तित्व को संकटापन्न समझ गंगा जी को काशी सीमा पर ही बांध दिया और उनका प्रवाह उलट कर उन्हें उत्तरवाहिनी प्रवाहित कर दिया। इससे गंगा जी का सम्राट सगर के पूर्वजों के भस्म होने के स्थल तक जाने का मार्ग अवरूद्ध हो गया। भगीरथ को गंगावतरण से अभीष्ट पूर्वजों की मुक्ति का अपना मनोरथ असिद्ध होता जान पड़ा। मनोरथ की सफलता हेतु भागीरथ एवं उनके अनुनय पर मां गंगा ने भी भगवान विश्वनाथ से प्रवाह मुक्त करने की याचना की। तब भगवान विश्वनाथ ने मुक्त प्रवाह हेतु गंगा जी से तीन वचन लिए, प्रथम यह कि गंगा जी काशी के घाटों को अपने प्रवाह से क्षतिग्रस्त नहीं करेंगी। दूसरा यह कि गंगा जी का कोई जलीय जन्तु काशी में मनुष्यों को क्षति कारित नहीं करेगा। श्री विश्वनाथ जी ने तीसरा वचन यह लिया कि गंगा जी अपने साक्षात देवी स्वरूप में काशी में ही विराजेंगी। तब से काशी ही गंगा जी का घर है।
—अपने घर में गंगा जी का उत्सव
इन्हीं पौराणिक आख्यानों एवं सनातन परंपरा के निर्वाह में वर्ष 2024 में प्रथम बार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा भव्य आयोजन कर गंगा जी का महोत्सव मनाया गया था। इस विशिष्ट आयोजन के लिए संपूर्ण धाम की विशिष्ट साज सज्जा सुंदर सजावटी प्रकाश लगा कर की गई। गंगा सप्तमी के दिन मां गंगा की विशिष्ट आराधना के क्रम में ललिता घाट पर सुंदर पुष्प द्वार सजा कर गंगा जी का भव्य अभिषेक किया गया। तत्पश्चात धाम परिसर में स्थित गंगा मंदिर में भव्य गंगा आराधना पूजा संपन्न की गई। दिन भर विभिन्न धार्मिक क्रिया कलापों के साथ उत्सव के उल्लास को निरंतर सजीव रखते हुए सांध्यवेला में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास द्वारा भव्य दिव्य सांस्कृतिक भजन संध्या शिवार्चनम आयोजित की गई थी। इस द्वितीय वर्ष में गंगा सप्तमी महोत्सव का आयोजन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास रविवार को पुनः कर रहा है।
—————
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
