जम्मू, 24 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पूर्व विधान परिषद सदस्य और भाजपा प्रवक्ता गिरधारी लाल रैना ने कश्मीर में शैक्षणिक कैलेंडर में प्रस्तावित बदलाव के बारे में जल्दबाजी में निर्णय लेने के खिलाफ सरकार को आगाह किया है। उन्होंने शिक्षा मंत्री सकीना इटू को संबोधित करते हुए नवंबर शैक्षणिक सत्र को बहाल करने पर कोई भी निर्णय लेने से पहले गहन विचार-विमर्श करने का आग्रह किया।
रैना ने कश्मीर में नवंबर शैक्षणिक सत्र को बहाल करने के लिए जनता से प्रतिक्रिया मांगने के मंत्री के बयान के समर्थन पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने तर्क दिया कि कठोर सर्दियों पर यह ध्यान 2022 के बदलावों के लाभों को नजरअंदाज करता है, जिसने जम्मू और कश्मीर के शैक्षणिक कैलेंडर को राष्ट्रीय कार्यक्रम के साथ संरेखित किया।
राष्ट्रीय शैक्षणिक कैलेंडर के साथ तालमेल को नुकसानदेह बताने वाले कथानक की आलोचना करते हुए रैना ने याद दिलाया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1947 से राज्य सरकारों के लिए एक मार्गदर्शक ढांचा रही है, जिससे छात्रों और समाज दोनों को लाभ हुआ है। उन्होंने जम्मू और कश्मीर में शिक्षा के विकास पर राज्य सरकार की समिति की 1973 की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें पुष्टि की गई थी कि राज्य की शिक्षा प्रणाली मूलतः देश के बाकी हिस्सों की तरह ही है। इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय सिद्धांतों पर आधारित सुधारों की वकालत की गई थी जैसे कि 10+2+3 शिक्षा प्रणाली में बदलाव जिसे बाद में जम्मू और कश्मीर ने अपनाया।
रैना ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रणाली में कोई भी बदलाव सावधानीपूर्वक चरणबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए लेकिन राष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बिठाने का सिद्धांत बरकरार रहना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों का छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने एक ऐसे संतुलित दृष्टिकोण की मांग की जो दीर्घकालिक शैक्षिक लाभों को प्राथमिकता दे। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि नवंबर सत्र में वापस लौटने के लिए बताई गई कठोर सर्दियों की स्थिति अब उतनी प्रासंगिक नहीं रह गई है। बुनियादी ढांचे में सुधार और जलवायु परिवर्तन ने पूरे साल कश्मीर में पर्यटन को बढ़ाया है जबकि सर्दियों के दौरान श्रीनगर-लेह सड़क बंद होने में काफी कमी आई है जिससे हर साल पहुंच के नए रिकॉर्ड बन रहे हैं।
रैना ने सरकार से निहित स्वार्थों और राजनीतिक उद्देश्यों के दबाव का विरोध करने और इसके बजाय इस बात पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया कि कश्मीर में सीबीएसई से संबद्ध स्कूल अपने शैक्षणिक कैलेंडर का प्रबंधन कैसे करते हैं। इन स्कूलों को माता-पिता और छात्र बहुत पसंद करते हैं। दूरदराज के इलाकों में भी लोग इसका समर्थन करते हैं जो यह साबित करता है कि राष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बिठाना छात्रों के सर्वोत्तम हित में है।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा