Uttar Pradesh

आलू की सफल खेती के लिए समय से पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन किया जायेः विनीत कुमार

आलू की सफल खेती के लिए समय से पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन किया जायेः विनीत कुमार

हरदोई,02 जनवरी (Udaipur Kiran) जिला कृषि रक्षा अधिकारी विनीत कुमार ने बताया कि आलू की फसल में नाशीजीवो (खरपतवारों एवं कीटों व रोगों से लगभग 40 से 45 फीसदी की हानि होती है। कभी कभी यह हानि शत प्रतिशत होती है।

आलू की सफल खेती के लिए आवश्यक है की समय से पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन किया जाय। यह रोग फाइटोपथोरा इन्फेस्टेंस नामक कवक के कारण फैलता है, आलू का पछेती अंगमारी रोग बेहद विनाशकारी है। जब वातावरण में नमी व रोशनी कम होती है और कई दिनों तक बरसात या बरसात जैसा माहौल होता है, तब इस रोग का प्रकोप पौधे पर पत्तियों से शुरू होता है। यह रोग 4 से 5 दिनों के अंदर पौधों की सभी हरी पत्तियों को नष्ट कर सकता है। पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं। पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है। इसके लिए 20 से 21 डिग्री सेल्सियस तापमान मुनासिब होता है। आर्द्रता इसे बढ़ाने में मदद करती है। पछेती झुलसा रोग का प्रबंधन जब तक आलू के खेत में इस रोग के लक्षण नही दिखाई देता है, तब तक मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानि दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते है, लेकिन एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैंकोजेब नामक देने का कोई असर नहीं होगा। इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसी प्रकार फेनोमेडोन मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव कर सकते है। मेटालैक्सिल एवं मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। एक हेक्टेयर में 800 से लेकर 1000 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी। छिड़काव करते समय पैकेट पर लिखे सभी निर्देशों का पालन अवश्य करें।

(Udaipur Kiran) / अंबरीश कुमार सक्सेना

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