
उत्तर प्रदेश, 18 अप्रैल जौनपुर (Udaipur Kiran) । जिले के मछलीशहर कोतवाली क्षेत्र के बसिरहा गांव निवासी घुरहू बिन्द की पाकिस्तान के कराची जेल में मौत हो गयी। पाकिस्तानी पुलिस की यातना से जौनपुर के घुरहू बिंद ने जेल में फांसी लगाकर जान दे दी। बाघा बार्डर से मृत घुरहू बिंद का शव जौनपुर 19 अप्रैल की सुबह पहुंचने वाला है । पाकिस्तान के कराची जेल में बंद घूरहू बिंद( 53) को वहां की पुलिस ने ऐसी यातनाएं दी कि उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मिली जानकारी के अनुसार 25 मार्च 2024 को रात में 2.20 बजे रस्सी के सहारे बाथरूम में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।अब भी उसके सात साथी और कराची जेल में बंद हैं और सब डरे हुए हैं। अब सभी सात बंदियों को पाक जेल से छुड़ाकर वापस भारत लाने के लिए ग्रामीणों ने भारत सरकार से अपील की है। मृतक की चार बेटियां और दो बेटे अनाथ हो गये हैं। घुरहू बिन्द के घर की माली हालत ठीक न होने के कारण कमाने के लिए सन् 2021 में गुजरात गये हुए थे वे वहां पर ओखा बंदरगाह के पास समुद्र से मछली पकड़ने का काम करते थे। 8 फरवरी 2022 को पाकिस्तानी रेंजरों ने घुरहू समेत सात मछुआरों को पकड़कर कराची जेल में बंद कर दिया। पाकिस्तानी जेल बंदी रक्षकों द्वारा दी जाने वाली यातनाओं के चलते उसने फांसी लगाकर जान दे दी। 2002 में कराची जेल से छूटे राजेंद्र बिंद ने आपबीती बताते हुए कहा कि बहुत यातनाएं मिलती हैं जेल में। जिलाधिकारी डॉ. दिनेश चंद्र ने कहा कि पीड़ित परिवार की हर तरह से सम्भव मदद दिलाई जायेगी। पीएम आवास, विधवा पेंशन, समाज कल्याण विभाग से अन्य योजनाओ के द्वारा मदद दिलाई जायेगी।शासन प्रशासन व परिवार वालों को इसकी जानकारी घूरहू के साथ कराची जेल में बंद धमेंद्र बिन्द के द्वारा भेजे गये चिठ्ठी से हुई। दो पेज में लिखे गये पत्र में उसने पहले श्री गणेशाय नमः लिखा है उसके बाद ठेठ भाषा में पूरी बात लिखी है। घुरहू की पत्नी पार्वती देवी ने बताया कि उनकी चार पुत्रियों में सुनीता,सीता,अवतारी विवाहित हैं व संतोषी अविवाहित हैं।पिता की गिरफ्तारी के बाद पुत्र धीरज और नीरज नौकरी कर रहे हैं।कराची जेल में जौनपुर के पांच व भदोही के दो मछुआरे अभी भी बंद हैं।
जिसमें 6 जौनपुर के है और दो भदोही सुरियावां के। उनके नाम धर्मेन्द्र बिंद ,विनोद बिंद ,मुलायम बिंद , लालमन बिंद ,नीरज बिंद व सुरेश बिंद हैं। उन्ओं अपने देश वापस लाया जाए, जिससे उनके साथ न्याय हो सके।
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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र कुमार मिश्र
