
प्रयागराज, 09 जून (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना वैध दस्तावेज शस्त्र लिपिक की मिलीभगत से पिस्तौल खरीदने के आरोपित आगरा निवासी शोभित चतुर्वेदी को राहत देने से इन्कार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा बिना बड़े अधिकारियों की सहमति के लिपिक से मिलीभगत कर शस्त्र लाइसेंस नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले में दर्ज एफआईआर रद्द करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने दिया है। हालांकि कोर्ट ने इतनी छूट जरूर दी है कि याची जमानत अथवा अग्रिम जमानत के लिए सक्षम अदालत में अर्जी दायर कर सकता है। याची के खिलाफ थाना नाई की मंडी आगरा में धारा 420, 467, 468, 471 आईपीसी तथा धारा 3, 25, 30 आर्म्स एक्ट के अंतर्गत एफआइआर पंजीकृत की गई है।
आरोप है कि शोभित ने विक्रेता से खरीद के किसी वैध दस्तावेज के बिना ही पिस्तौल खरीदी। याची का पहला लाइसेंस उत्तराखंड में रिवॉल्वर का है और दूसरा लाइसेंस सिंगल बैरल ब्रीच लोडिंग गन का है। इसे भी गलत जानकारी के आधार पर जिला मजिस्ट्रेट से हासिल किया गया था। इसमें आवेदक का मूल जन्म स्थान लखनऊ के बजाय आगरा दिखाया गया था। आवेदन के कॉलम संख्या 13 में प्रथम लाइसेंस का विवरण नहीं दर्शाया गया है। कॉलम संख्या 11 में, जिसमें परिवार के लाइसेंस तथा स्वयं के लाइसेंसों के बारे में जानकारी की आवश्यकता है, उत्तराखंड राज्य से जारी प्रथम लाइसेंस का उल्लेख नहीं है।
जिला मजिस्ट्रेट आगरा के कार्यालय में आर्म्स क्लर्क संजय कुमार पर भी मिलीभगत का आरोप है। कोर्ट ने कहा, शस्त्र क्लर्क और याची के बीच इस तरह की मिलीभगत वरिष्ठ अधिकारियों की भागीदारी के बिना नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा आवेदन में गलत जानकारी प्रस्तुत करने के कारण, हम आरोपित के खिलाफ एफआइआर रद्द करने या चल रही जांच को रोकने के लिए इच्छुक नहीं हैं।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
