उज्जैन, 4 सितंबर (Udaipur Kiran) । प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के पिताजी का मंगलवार को निधन हो गया। बुधवार प्रात: स्वनिवास पर जब श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंचे और चर्चा की तो डॉ.यादव ने पिताजी से जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा- जब मैं विधायक का चुनाव जीतकर आया और पिताजी के पैर छुए तो उन्होंने कहा- जीत गए अच्छी बात है लेकिन स्वाभीमान की जींदगी जीना। कभी किसी के पैरों में मत गिरना। अपने दम पर, कर्म के आधार पर आगे बढऩा। स्वयं के द्वारा की गई मेहनत ही एक दिन रंग लाएगी और ऊंचाई तक पहुंचाएगी। जब मैं मुख्यमंत्री बना और आशीर्वाद लेने उज्जैन आया तो घर पर चरण स्पर्श करते समय पिताजी ने कहा- अच्छा काम करना, लोगों का भला करना। किसी को दु:ख पहुंचे,ऐसा काम मत करना।
डॉ.यादव के अनुसार पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे। वे अपना स्वयं का काम आखिरी समय तक स्वयं ही करते रहे। कोई मिलने आता तो वे कभी यह नहीं कहते कि मैं विधायम/मंत्री/मुख्यमंत्री का पिता हूं। वे सामान्य जीवन जीते थे। उन्होने बताया कि जब मुख्यमंत्री निवास तैयार हो गया तो मैंने उज्जैन प्रवास के दौरान पिताजी को कहाकि आप भोपाल चलो और मुख्यमंत्री के बंगले में रहना। उन्होने कहा: मैं तो यहीं पर अच्छा हूं। आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं। तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करो। मैं यहीं पर अच्छा हूं। उनके दैनिक जीवन का एक हिस्सा खेत पर जाना। फसल तैयार होने पर उसे अपनी देखरेख में कटवाना और ट्राली के साथ स्वयं बेचने के लिए मण्डी जाना…। हम कहते भी कि यह सब आप मत किया करो। आराम करो। आपको जाने की क्या आवश्यकता है? इस पर वे कहते थे कि यह मैरा काम है,मैं ही करूंगा। वे बाजार भी सामान लेने निकल जाते थे। कभी उन्होने किसी की किसी काम के लिए मुझसे सिफारिश नहीं की। मैं उनके लिए एक पुत्र था, न कि कोई राजनीतिक हस्ती। उन्होने कहाकि जीवनभर कर्मशील रहे पिताजी के द्वारा दी गई सीख पर आज तक चला और आगे का सफर भी उन्ही सीख पर चलेगा। मुझे प्रदेश की जनता की सेवा करना है और कर्म करते जाना है। मैं मुख्यमंत्री रहते हुए भी अपने पिता की तर्ज पर अपने सारे काम स्वयं करता हूं। किसी की सेवा नहीं लेता हूं।
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल