नई दिल्ली, 21 सितंबर (Udaipur Kiran) । केन्द्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 100 दिनों के अंदर वन्यजीव आवासों के संपूर्ण विकास का लक्ष्य हासिल कर लिया है। मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग अवधि के लिए वन्यजीव आवासों के संपूर्ण विकास की केंद्र प्रायोजित योजना को जारी रखने की मंजूरी दी, जिसका कुल व्यय 2602.98 करोड़ रुपये है। इस योजना में प्रोजेक्ट टाइगर के साथ-साथ प्रोजेक्ट एलीफेंट और वन्यजीव आवासों के विकास का महत्वपूर्ण उप घटक शामिल है। यह सरकार की 100 दिवसीय कार्य योजना में शामिल मदों में से एक था।
मंत्रालय ने शनिवार को जारी अपनी विज्ञप्ति के माध्यम से बताया कि प्रोजेक्ट टाइगर में पहले से ही दिन-प्रतिदिन के प्रबंधन अभ्यासों में एम-स्ट्राइप्स (बाघों, उनके गहन संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिति के लिए निगरानी प्रणाली) मोबाइल एप्लिकेशन जैसी प्रौद्योगिकी का अंतर्निहित उपयोग शामिल है। यह एप्लिकेशन डिजिटल इंडिया पहल के अनुरूप है और 2022 में अखिल भारतीय बाघ अनुमान के 5वें चक्र के दौरान क्षेत्र स्तर के पर्यावरणीय डेटा के संग्रह के लिए बड़े पैमाने पर उसका इस्तेमाल किया गया था। अखिल भारतीय बाघ अनुमान अपने आप में तकनीकी रूप से गहन है, जिसमें देश भर में बाघों के आवासों में कैमरा ट्रैप की व्यापक तैनाती की गई है। इसमें प्रजातियों के स्तर की पहचान के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का भी उपयोग किया गया है।
इसके अलावा वन्यजीव आवास विकास घटक के अंतर्गत प्रोजेक्ट डॉल्फिन को डॉल्फिन की गणना के साथ-साथ उनके आवास की निगरानी के लिए रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल्स (आरओवी) और निष्क्रिय ध्वनिक निगरानी मशीनों जैसे उपकरणों के प्रावधान के जरिए समृद्ध करने का प्रस्ताव है। वन्यजीव आवास विकास के दायरे में प्रोजेक्ट लॉयन को भी परिकल्पित गतिविधियों के अनुसार मजबूत किया जाएगा। प्रोजेक्ट एलीफेंट घटक के अंतर्गत मानव-हाथी टकराव को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी उपायों का लाभ उठाने के लिए परिकल्पित किया गया है। हालांकि इनका परीक्षण प्रायोगिक आधार पर किया गया है, लेकिन इन्हें बड़े पैमाने पर तैनात किया जाएगा।
इन योजनाओं से 55 बाघ अभयारण्य, 33 हाथी अभयारण्य और 718 संरक्षित क्षेत्र और उनके प्रभाव क्षेत्र लाभान्वित होंगे। इन क्षेत्रों के जंगल राष्ट्र की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा जलवायु परिवर्तन की प्रतिकूलताओं के खिलाफ एक सुरक्षा कवच हैं। इसके अलावा बाघ, हाथी, चीता, हिम तेंदुआ और शेर इन पारिस्थितिक तंत्रों के संकेतक के रूप में कार्य करते हैं, इसलिए इनके संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इतना ही नहीं, कम ज्ञात प्रजातियां पुनर्प्राप्ति योजना के जारी रहने से लाभान्वित होंगी। इस योजना में पर्यावरण-पर्यटन के माध्यम से अप्रत्यक्ष रोजगार के अलावा प्रत्यक्ष भागीदारी के माध्यम से 50 लाख से अधिक रोजगार पैदा होंगे।
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(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी