Uttar Pradesh

इंजीनियर दूल्हा और शिक्षिका दुल्हन,विदाई बैलगाड़ी से

विदाई कराकर दुल्हन ले जाते हुए दूल्हा

दिया गौ व पर्यावरण संरक्षण का संदेश

झांसी, 30 अप्रैल (Udaipur Kiran) । वर्तमान में आधुनिकता की दौड़ में एक ओर जहां किसान का बेटा अपनी दुल्हन की विदाई हेलीकॉप्टर से कराकर समृद्धता का प्रदर्शन करता है वहीं दूसरी ओर बुधवार को एक इंजीनियर दूल्हे ने अपनी शिक्षिका पत्नी की विदाई बैलगाड़ी से कराई। इसके द्वारा न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया बल्कि गौवंशो के बेहतर उपयोग को भी बढ़ावा देने का कार्य किया गया।

चिरगांव थाना क्षेत्र के ग्राम जरियाई के रहने वाले संतोष कुमार विश्वकर्मा पेशे से किसान और उनकी पत्नी विनीता गृहणी हैं। उनका इकलौता बेटा अभिजीत सिविल इंजीनियर है। अभिजीत के ससुर राम गोपाल विश्वकर्मा सरकारी शिक्षक और सास सुनीता विश्वकर्मा आंगनबाड़ी कार्यकत्री हैं। अभिजीत की शादी झांसी में मंगलवार को प्राइवेट शिक्षिका बबली के साथ हुई। ये अरेंज मैरिज थी। वैवाहिक रस्म और शादी समारोह सम्पन्न होने के बाद बुधवार को बबली की बैलगाड़ी से विदाई की।

सुबह विदाई के वक्त सभी को लग रहा था कि विदाई का समय आ गया है, लेकिन जिस गाड़ी में दुल्हन और दूल्हे को बैठना है, वह दिखाई नहीं दे रही। अभी चर्चा चल ही रही थी कि विदाई के लिए सजाई गई बैलगाड़ी समारोह में जा पहुंची। साथ में डोली भी थी।

पूंछने पर अभिजीत ने बताया, वह अपनी दुल्हन को बैलगाड़ी से विदा कर ले जाएंगे। उनका कहना था कि वह गांव के रहने वाले हैं और अपनी जमीन से जुड़े हैं। किसान परिवार से आने के चलते बैलगाड़ी उनकी पहचान है। इसीलिए उन्होंने विदाई के लिए बैलगाड़ी को चुना। इसके साथ ही वह पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देना चाहते हैं। लोगों को अपने बुजुर्गों की परंपरा का निर्वहन करना चाहिए।

पिता का कहना

पिता बोले- बेटे का मन था, गांव से मंगवाई बैलगाड़ी

इंजीनियर अभिजीत के पिता संतोष कुमार विश्वकर्मा ने कहा- लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों और हेलिकॉप्टर से दुल्हन विदा कराते हैं। लेकिन, ये हर व्यक्ति का सामर्थ्य नहीं होता। हम लोग ग्रामीण परिवेश से आते हैं। शादी से पहले बेटे की मंशा थी कि उसकी दुल्हन की विदाई बैलगाड़ी से कराई जाए। इसलिए उन्होंने गांव से बैलगाड़ी मंगवाई है। ये कदम इसलिए उठा रहे हैं कि पुराने समय में किसान को अन्नदाता और उसने उपकरण को देवतुल्य माना जाता था। लेकिन, अब मशीनरी के दौर में लोग उसे भुलाते जा रहे हैं। हमारा मकसद यही है कि लोग पुराने दौर में लौटें, ताकि जीवन में शांति और खुशहाली आ सके।

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(Udaipur Kiran) / महेश पटैरिया

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