कानपुर, 08 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । प्राकृत साहित्य में मानवीय संवेदनाओं का अभूतपूर्व चित्रण भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा किया गया है। यह प्राचीनतम भाषा भारत ही नहीं विश्व के लिए अहम है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास से प्राकृत भाषा को नया आयाम मिलेगा। यह बातें मंगलवार को सीएसजेएमयू में आयोजित संगोष्ठी में डॉ. आशीष जैन ने कही।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) कानपुर के स्कूल आफ लैंग्वेजेज में आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन पीठ द्वारा एक दिवसीय भारत और विश्व के लिए प्राकृत भाषा का महत्व विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. आशीष जैन ने कहा कि संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाएं भारतीय संस्कृति का गौरव हैं।
वक्ता डॉ.समणी संगीत प्रज्ञा (जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, लाडनू राजस्थान) ने कहा कि भारतीय संस्कृति अजर एवं अमर होने का एक प्रमुख कारण भारत की धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कृति का जुड़ाव है। प्राकृत साहित्य में दया, करुणा, अहिंसा जीवत्य सिद्धि की बात की गई है। समणी ने शिलालेखों का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत की प्राचीनता का वर्णन प्राकृत भाषा में प्राप्त शिलालेखों में दिग्दर्शित होती है।
मुख्य अतिथि के रुप में जैन शोधपीठ के प्रमुख ट्रस्टी एवं संस्थापक प्रदीप जी तिजारा एवं अरविंद कुमार ने प्राकृत भाषा के इतिहास से अवगत कराते हुए बताया कि भगवान महावीर ने प्राकृत भाषा में अपने उपदेशों को दिया। जैन समाज लंबे समय से प्राकृत भाषा के जिस उच्च सम्मान के लिए प्रयासरत था आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में प्राप्त किया।
वहीं संयोजक डॉ. अंकित त्रिपाठी ने भरोसा दिलाया कि विश्वविद्यालय प्राकृत भाषा संवर्धन एवं विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगा। डॉ. प्रभात गौरव मिश्र ने प्राकृत भाषा एवं साहित्य के महत्व के चिंतन पर जोर दिया। इस दौरान ऑनलाइन माध्यम से देश के विभिन्न प्रांतों से विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने जुड़कर प्रधानमंत्री मोदी एवं कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. सुमना विश्वास, डॉ. पूजा अग्रवाल, डॉ. रिचा शुक्ला, डॉ. विकास कुमार यादव, शालिनी शुक्ला, डॉ. प्रीतिवर्धन दुबे एवं अन्य शिक्षक तथा विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / अजय सिंह