जोधपुर, 12 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । मथुरादास माथुर अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक विभाग में एंडोवस्कुलर तकनीक- टावी ( ट्रांस कैथेटर ऑर्टिक वाल्व इंप्लांटेशन/ रिप्लेसमेंट ) के माध्यम से राजस्थान में पहली बार कार्डियो थोरेसिक सर्जनों की टीम ने वेल्व ईन वाल्व तकनीक से मरीज के हृदय के सिकुड़े हुए ऑर्टिक वाल्व से निजात दिलाई गई तथा एक अन्य मरीज में टावी प्रोसीजर किया गया।
डॉ सुभाष बलारा (सीटीवीएस विभागअध्यक्ष) ने बताया कि 62 वर्षीय ओसिया निवासी चैनी देवी दो महीने से सीने में दर्द तथा सांस फूलने की तकलीफ से पीडित थी। इस मरीज का सन 2008 में गुजरात के किसी प्राइवेट अस्पताल में अयोरटिक वॉल रिप्लेसमेंट सर्जरी की गई थी , जांचों के उपरांत यह पता चला कि उनके हृदय के ऑर्टिक वाल्व में पुन: काफी सिकुडऩ ( सिविअर अयोर्टिक स्टेनोसिस ) हो गई है और यह खराब हो चुका है। पहले इस बीमारी के उपचार के लिए रीडू – सर्जरी (ऑर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट) ही ऑप्शन था परंतु आधुनिक टावी (टावर) प्रणाली के माध्यम से सिर्फ नीडल पंचर होल के जरिए वाल्व इंप्लांटेशन संभव है । अत: मरीज की बीमारी, उम्र तथा कोमौरबिड इलनेसेस को देखते हुए मरीज को टावी प्रोसीजर करने का निर्णय लिया गया। इस प्रोसीजर में मरीज के पुराने सन 2008 में बदले गए आर्टिफिशियल आर्टिक वालव के अंदर एक नया वैलव इंप्लांट किया गया। यह संपूर्ण राजस्थान में कार्डियक सर्जनों द्वारा पहला वाल्व इंन वॉल्व( टावी) प्रोसीजर है ।
दूसरा मरीज़ 67 वर्षीय खिमसर निवासी जेठाराम 8 महिनों से सांस फूलने तथा तथा अनियमित धड़कन की समस्या से जूझ रहा था, हार्ट की जांचों में पता चला कि उनके आर्टिक वाल में सिकुडऩ आ गई है (सीवर ऑर्टिक स्टेनोसिस ) इसलिए इनका भी इंडो वैस्कुलर तकनीक टावी द्वारा सफलता पूर्वक वैलव रिप्लेस किया गया। इस प्रोसीजर के लिए अहमदाबाद के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ मानिक चोपड़ा तथा उदयपुर से कार्डियक सर्जन डॉ संजय गांधी को भी बुलाया गया।
पहले इस ऑपरेशन की प्रणाली के लिए मरीजों को अन्य राज्यों तथा मेट्रो शहरों में जाना पड़ता था जहां इलाज का खर्चा लगभग 20 से 25 लाख रुपये आता है, परंतु यह इलाज अब मथुरादास माथुर अस्पताल में राजस्थान सरकार की आरजीएचएस स्कीम के अंतर्गत नि:शुल्क किया गया।
भारत में इसका मुख्य कारण रूमैटिक हार्ट डिजीज :
डॉ अभिनव सिंह, सहायक आचार्य, कार्डियोथोरेसिक विभाग ने बताया कि आयोर्टिक स्टेनोसिस एक बढ़ाते हुए उम्र की बीमारी है जिसका इनसीडियस 65 वर्ष के ऊपर के लोगों में 2 से 10 प्रतिशत है और भारत में इसका मुख्य कारण रूमैटिक हार्ट डिजीज है अन्य कारणों में हाई ब्लड प्रेशर, वाल्व में चूना जमना (एथेरोसिलेरोसिस) है। इस बीमारी मे मरीज की सांस फूलना, छाती में दर्द , बेहोशी आना या धडक़न की अनियमित भी रह सकती है। ऑर्टिक वाल्व में सिकुडऩ एक स्टेज के बाद आगे बढ़ जाने के बाद ओपन वैलव रिप्लेसमेंट या इंडो वैस्कुलर टेक्निक टावी प्रोसीजर के जरिए बीमारी से निजात दिलाई जा सकती है। प्रोसीजर के उपरांत दोनों मैरिज मरिज अब स्वस्थ है और सिटीवीएस विभाग में उपचाराधीन है। डॉ एस एन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल व नियंत्रक डॉ बी.एस जोधा तथा एमडीएम अस्पताल के अधीक्षक डॉ गणपत चौधरी ने डॉक्टरों की टीम को बधाई दी।
(Udaipur Kiran) / सतीश