
पालमपुर, 17 मई (Udaipur Kiran) । पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने स्वतंत्रता प्रहरी सम्मान को लेकर जारी विवाद पर गहरी पीड़ा जताते हुए कहा कि वे इस मुद्दे से बेहद दुखी और आहत हैं। उन्होंने कहा कि अपने सार्वजनिक जीवन में पहली बार वे किसी विषय पर इतनी वेदना के साथ बोलने को विवश हुए हैं।
शांता कुमार ने कहा शनिवार काे एक बयान में कहा कि 1975 में आपातकाल की घोषणा और लोकतंत्र की हत्या भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय था। उस दौर में मोरारजी देसाई से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाला गया। उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व ने यहां तक कहा था कि ‘कैदियों को कभी रिहा नहीं किया जाएगा और अगर किया भी गया तो समुद्र में फेंकना पड़ेगा’।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उस समय वे और उनके जैसे हजारों लोग किसी सम्मान या लाभ की अपेक्षा से जेल नहीं गए थे। उन्होंने कहा कि हमने 19 महीने जेल में सम्मान के लिए नहीं बिताए और न ही कभी किसी से कोई मांग की। आज जब उस संघर्ष को लेकर विवाद हो रहा है, तो यह हमारे जैसे लोगों के लिए अपमानजनक है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार से अपील की कि इस ऐतिहासिक विषय को विवाद में न घसीटा जाए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार को उचित लगे तो वह स्वयं शिमला जाकर अब तक प्राप्त धनराशि को मुख्यमंत्री को लौटाने को तैयार हैं।
शांता कुमार ने कहा कि थोड़े से जीवित बचे हम लोगों को बार-बार अपमानित न किया जाए। यह स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए किए गए संघर्ष का अपमान है।
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(Udaipur Kiran) शुक्ला
