जम्मू, 12 दिसंबर (Udaipur Kiran) । मार्गशीर्ष पूर्णिमा सनातन धर्म में विशेष महत्व रखती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के विषय में श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहा जाता है। मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि इस वर्ष सन् 2024 ई. 14 दिसंबर शनिवार शाम 04 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 15 दिसंबर रविवार दोपहर 02 बजकर 32 पर समाप्त होगी। मार्गशीर्ष रात्रि पूर्णिमा व्रत 14 दिसंबर शनिवार को होगी और दिवा मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत 15 दिसम्बर रविवार को होगा। इस दिन भगवान श्रीसत्यनारायण जी भगवान की कथा पढ़ना अथवा सुनना या पूजा करवाना बेहद शुभ होता है। पूर्णिमा तिथि के दिन भगवान श्रीगणेश माता पार्वती भगवान शिव,श्रीकृष्ण जी और चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान करने का विशेष महत्व है किसी कारण वश नदियों में स्नान ना कर सके तो घर में ही पानी में गंगाजल डाल कर स्नान करें और घर के आस पास जरूरतमंदों लोगों को यथाशक्ति दान अवश्य करें ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा सन् 2024 ई. की आखिरी पूर्णिमा होगी,धर्मग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष की पूर्णिमा तिथि पर अन्य पूर्णिमा तिथियों की तुलना में 32 गुना ज्यादा फल मिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए,ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए,इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं, इस दिन सात्विक चीजों का सेवन किया जाता है।
शनिवार 14 दिसंबर शनिवार को भगवान श्रीदत्तात्रेय जयंती भी है, दत्तात्रेय जयंती को दत्त जयंती भी कहते हैं। भगवान दत्तात्रेय को भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु तीनों की प्रतिरूप माना जाता है। वे तीनों के अवतार माने जाते हैं।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा