प्रयागराज, 19 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज इविवि भारत, यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम यूके और इंक्लूसिव फ्यूचर फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से छठवां अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘महिलाएं और धर्म’ हाईब्रिड मोड में किया गया। इसमें 600 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। यह सम्मेलन जेंडर और धर्म के बीच जटिल सम्बंधों पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण मंच था और इसमें स्कॉलर्स, एक्टिविस्ट्स और प्रैक्टिसनर्स ने अपनी-अपनी राय दी।
समन्वयक डॉ. जूही गुप्ता ने भारत और विदेशों में विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ किए गए पांच पूर्व सम्मेलनों का उल्लेख किया। उन्होंने इंक्लूसिव फ्यूचर फाउंडेशन और यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम यूके के साथ की गई साझेदारी को रेखांकित किया और सम्मेलन के उद्देश्य को साझा किया। उन्होंने संगठन के शैक्षिक सहयोगों को बढ़ावा देने, शोध को प्रोत्साहित करने और समावेशी शैक्षिक पहलों को बढ़ावा देने के उद्देश्य को बताया। उन्होंने विशेष रूप से भारत और अन्य देशों में महिलाओं के धर्म और समाज में भूमिका को समझने के लिए कई जिज्ञासाएं उठाई।
ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज के प्राचार्य प्रो आनंद शंकर सिंह सह समन्वयक ने महिलाओं की धार्मिक भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने विभिन्न धर्मों से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि अधिकांश भारतीय धर्मों में देवी की पूजा होती है, पर सामाजिक नियमों ने ऐतिहासिक रूप से महिलाओं के धार्मिक स्थान को सीमित किया है। उन्होंने विशेष रूप से भारतीय धर्मों में देवी पूजा के महत्व और उसकी सामाजिक और सांस्कृतिक जड़ों को रेखांकित किया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डीन, फैकल्टी ऑफ आर्ट्स की प्रो अनामिका रॉय ने भारतीय धार्मिक संदर्भ में देवी पूजा और नारीवाद के बीच के जटिल रिश्तों पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि भारतीय समाज में देवी के रूप में पूजी जाने वाली महिलाओं का धार्मिक स्थान और उनके अधिकारों के बीच अक्सर विरोधाभास होता है। प्रो रॉय ने देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में महिला शक्ति की पूजा की परम्परा को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया और इसे भारतीय संस्कृति के मौलिक पहलू के रूप में व्याख्यायित किया।
डॉ. नायला सहर, अमेरिकन यूनिवर्सिटी, दुबई ने मुस्लिम महिलाओं की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे 9/11 के बाद मुस्लिम महिलाओं को अमेरिका में बढ़ते इस्लामो फोबिया और मुस्लिम विरोधी माहौल का सामना करना पड़ा और इन महिलाओं ने इसके खिलाफ किस प्रकार की सक्रियता दर्ज की। डॉ. सहर ने इन महिलाओं के संघर्षों का विश्लेषण किया और उनके सामने मौजूद चुनौतियों की व्याख्या की।
डॉ. स्कॉलर वेयुआ कीलू, सेंटपॉल्स यूनिवर्सिटी, केन्या ने महिलाओं के खिलाफ सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों और पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती दी। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए धर्म में महिलाओं के अधिकारों के लिए अपनी संघर्ष यात्रा का जिक्र किया।
रैबी जैकी टैबिक’ को-प्रेसिडेंट, वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फेथ्स, इंग्लैंड ने बताया कि कैसे यहूदी धर्म में महिलाओं की भूमिका को लेकर पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण की चुनौती दी जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे सुधारात्मक यहूदी आंदोलन ने महिलाओं को धर्मिक नेतृत्व में भाग लेने का अधिकार दिया।
इस छठवें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापन डॉ. जूही गुप्ता ने किया। उन्होंने सम्मेलन में उठाए गए प्रमुख मुद्दों, जैसे महिलाओं और धर्म का सम्बंध, धार्मिक शिक्षाओं और सामाजिक प्रथाओं के बीच का अंतर, और विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में महिलाओं के समक्ष आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को रेखांकित किया। उन्होंने यह भी बताया कि महिलाओं को धार्मिक नेतृत्व में और उनकी आवाज को महत्वपूर्ण बनाने की आवश्यकता है।
डॉ मनोज कुमार दूबे ने बताया कि संचालन डॉ. शाइस्ता इरशाद ने किया। सम्मेलन के माध्यम से एक स्पष्ट और सकारात्मक संदेश दिया गया, जिसमें महिलाओं और धर्म के बीच अंतर को समझने और समावेशिता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। सम्मेलन में दिए गए विचारों और प्रस्तुतियों ने धर्म, जेंडर और समाज के बीच जटिल और महत्वपूर्ण रिश्तों को प्रतिभागियों के समक्ष और अधिक स्पष्ट किया।
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र