Uttar Pradesh

देववाणी संस्कृत है विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा: शंकरानन्द

भारतीय शिक्षण मंडल के संगठन मंत्री शंकरानंद को स्मृति चिन्ह भेंट करते कार्यकर्ता

लखनऊ, 29 अप्रैल (Udaipur Kiran) । भारतीय शिक्षण मंडल के 56वें स्थापना दिवस पर मंगलवार को बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मंडल, अवध प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय ज्ञान परम्परा: समाज के अंतिम छोर तक’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री शंकरानन्द ने संस्कृत को सबसे वैज्ञानिक भाषा बताते हुए कहा कि देववाणी संस्कृत का अध्ययन करें एवं भय को त्यागकर पहले स्वयं निर्माण करें और फिर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। कहा कि हमें भारतीय दृष्टि को प्राप्त करने के लिये शिक्षा प्रणाली को ज्ञान के साथ-साथ मूल्यों और कौशल के विकास पर केंद्रित करने की आवश्यकता है। क्योंकि भारतीय संकल्पना और ज्ञान की पूर्णता की ओर जाना ही जीवन का उद्देश्य है।

शंकरानन्द ने व्यक्तिगत विकास में महत्वपूर्ण नवधा भक्ति सूत्र के प्रत्येक चरण जैसे श्रवणं, चिन्तनं, अध्ययनं, विश्लेषणं, आत्मावलोकनं, प्रवचनं, निधिद्यासनं, लेखनों और व्याख्यानं की विस्तृत जानकारी दी। साथ ही बताया कि मनुष्य बनने का एकमात्र उपाय ‘परिस्थिति से परे होना’ है एवं सत्य के प्रति अटूट निष्ठा, धर्म का आचरण, निस्वार्थ भाव से परहित के कार्यों में संलग्न होकर, भारतीय मूल ग्रंथों के व्यापक अध्ययन व उसके आदर्शों को चरित्र में उतारकर एवं कर्मयोगी व सृजनशील बनकर ही भारतीय संस्कृति की ओर वापस लौटा जा सकता है।

डॉ. राममनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. अमरपाल सिंह ने बताया कि शिक्षा का मूल भारतीयकरण है। साथ ही भारतीय ज्ञान प्रणाली के अंतर्गत गुरुवाद पर जोर देकर ही शिक्षा के वास्तविक ध्येय को चरितार्थ किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि भारतीय शिक्षण मंडल 1969 में स्थापित एक स्वैच्छिक संगठन है, जो सदैव से शिक्षा में भारतीयता के प्रचार – प्रसार एवं इसके पुनरूत्थान हेतु समर्पित रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति में निहित मूल्यों और भारत में सांस्कृतिक पुनरूत्थान पर विशेष रूप से कार्य करना है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केएनआईटी के निदेशक डॉ. राजीव कुमार उपाध्याय ने कहा भारतीय परम्पराओं को पुनर्जीवित करने हेतु प्रयत्न करने चाहिये। उन्होंने कहा कि हमें प्रत्येक स्तर पर शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, जिससे विद्यार्थियों का चारित्रिक, मानसिक, आध्यात्मिक एवं सर्वांगीण विकास हो सके एवं वह भारतीय ज्ञान, संस्कृति, परम्पराओं को संजोए रखने में अपना अमूल्य योगदान दें सकें।

अंत में प्रो. कमल जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र द्वारा किया गया। समस्त कार्यक्रम के दौरान भारतीय शिक्षण मंडल के विभिन्न पदाधिकारी , बीबीएयू के विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विभिन्न एनजीओ से आये स्वयं सेवक एवं बच्चे मौजूद रहे।

(Udaipur Kiran) / बृजनंदन

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