धमतरी, 7 नवंबर (Udaipur Kiran) ।गंगरेल में आठ नवंबर शुक्रवार को परंपरागत देव मड़ई का आयोजन होगा। दिवाली के पश्चात् प्रथम शुक्रवार आठ नवंबर को होने वाले इस मेला में आसपास के सभी देवी-देवता, डांग डोरी, बैगा, सिरहा, गायता पुजारी को आमंत्रित कर सामूहिक रूप से मेला मड़ई का आयोजन किया जाता है, जिसे देखने सुनने दूर-दूर से बड़ी सुंख्या में लोग आते हैं। बताया जाता है कि इस मेले में 52 गांवों के देव विग्रह शामिल होगें, जो डूब के पश्चात् अलग अलग गांवों में हैं। मेला की तैयारियों को लेकर विभिन्न व्यवस्थाओं के सुचारू रूप से संचालन के लिए जिम्मेदारी दी गई है।
आदिशक्ति मां अंगारमोती ट्रस्ट के अध्यक्ष जीवराखन मरई के अनुसार मां अंगारमोती वनदेवी है जिसे गोंड़ों की कुल देवी भी कहा जाता है। हजारों वर्ष पूर्व आदिशक्ति मां अंगारमोती महानदी के तट एवं ग्राम-चंवर,बटरेल,कोकड़ी,कोरलमा के सीमा पर विराजमान थी,जिसकी विधिविधान से क्षेत्रवासी पूजा किया करते थे। गोंड़ समाज के पुजारी व सेवादार व्दारा ही माता की पूजा और सेवा की जाती थी। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को देव मड़ई मेला आयोजन करने की सदियों पुरानी परंपरा है जिसे गंगरेल में पुर्नस्थापित किए जाने के बाद निभाया जा रहा है।
मेला के दिन निसंतान महिलाएं बड़ी संख्या में मां अंगारमोती के दरबार पहुंचती है और माता का परण करती हैं। कहा जाता है कि माता स्वयं सिरहा के शरीर में प्रवेश करती है और मेला का भ्रमण करती है। इसके बाद जमीन पर पेट के बल लेटी निसंतान महिलाओं के उपर से चलते हुए आशीर्वाद देती हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे निसंतान महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है। प्रचलित कथाओं के अनुसार माता अंगारमोती 52 गांवों की देवी कहलाती थी। इन गांवों के लोग किसी भी परेशानी या समस्या होने पर मां अंगारमोती के पास जाकर मन्नत मांगते थे और मन्नत पूरी होने पर शुक्रवार के दिन माता की विशेष पूजा कराते हैं। माता के दरबार में खासकर निसंतान महिलाएं मातृसुख के लिए फरियाद लेकर पहुंचती है,जिसको माता अपनी आशीर्वाद देती हैं। मां अंगारमोती को लेकर मान्यता है कि मां सच्चे भाव से मन्नत मांगने पर उसे पूर्ण करती हैं। 1974-75 में माता की पुर्नस्थापना सन् 1965 से गंगरेल बांध बनाने की घोषणा पश्चात् वनांचल के 52 गांवों के ग्रामीणों को विस्थापित कर छत्तीसगढ़ के वृहद जलाशय का निर्माण किया गया। तब इस क्षेत्र के रहने वाले सभी ग्रामीण अन्यत्र चले गए। 52 गांव डूब में आने के बाद सन् 1974-75 में माता अंगारमोती को पुजारियों एवं श्रध्दालुओं व्दारा बैलगाड़ी से ग्राम-खिड़कीटोला लाया गया। गोड़ समाज प्रमुखों के सुझाव व आपसी चर्चा कर गंगरेल के तट पर पुर्नस्थापित किया गया। तब से लेकर आज तक मां अंगारमोती की सेवा व पूजा गंगरेल में ही की जा रही है।
(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा